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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
चउरंसा=चतुष्कोण चउण्हं चार का चउप्पय पशु (चौपाये) चंडं-चण्ड, तीक्ष्ण चंडा-चण्ड, क्रोध-शील चंपा चम्पा नाम की नगरी चक्कवट्टी-चक्रवर्ती चत्तारि=चार चय=शरीर चर(र)माणे-विचरते हुए, विहार करते
चरिज्ज=सदाचार में प्रवृत्ति करे चरिमे-चरम, अन्तिम (सायंकाल) चरेज्जा करे चाउलोदणे चावल, भात चाउरंगिणी-चतुरंगिणी सेना चारग-बंधणं कारागृह (जेल) में बन्धन चिक्खल्लकीचड़ चिच्चा छोड़कर चिद्वित्ता खड़ा होने वाला चित्त-वद्धणा=चित्त की मलिनता बढ़ाने
वाले । सा. चित्त-ज्ञान में वृद्धि करने
वाले चित्त-मंता य=चेतना वाली सजीव चित्त-समाहि-ठाणाई-चित्त-समाधि के
। स्थान चियत्त-देहे शरीर के ममत्व भाव छोड़ने
वाले चिर-द्वितिएसु-चिर-स्थिति वाले देवलोक
चुए च्युत हुए चुय-धम्माओ=धर्म से गिरते हुए को चेइए चैत्य, उद्यान, बगीचा चेएइ उत्पन्न करता है, उत्पन्न करने को
विचार करता है चेए(त)माणे करते हुए चेयसा=(दुष्ट) चित्त से चेयसे कलुसाविल देखो चेल-पेला वस्त्रों की पेटी छंद-राग-मती णिविटे-अपने अभिप्रायों
को राग अर्थात् विषयों की अभिलाषा ___ में स्थापन करने वाला छह छ: छत्तेण-छत्र से छमासिय=भिक्षु की छठी प्रतिमा जिस में छ:
दातें अन्न और इतनी ही पानी की ली
जाती हैं छविहा-छ: प्रकार की छायए-छिपाता है छिंद छेदन करो छिंदित्ता छेदन करने वाला छित्ता-छेदन कर छिवाडीए लघु चांबुक से छेदे दीक्षा-छेद जइ यदि जंपि जो कुछ भी जक्खे यक्षों को जढं छोड़कर जणं (भोले भाले) जन को, मनुष्य को,
व्यक्ति को
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