Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 559
________________ शब्दार्थ-कोष पडिमा-पडिवन्नस्स-जिसको प्रतिमा की प्राप्ति हुई है। पडियाइक्खेत्ता पदार्थों को प्रत्याख्यान अर्थात् त्याग कर पडिरूव-काय-संफासणया प्रतिरूप काय-स्पर्श अर्थात् शरीर का मनचाहा स्पर्श पडिलाभेमाणे (साधुओं को अन्न और जल) देता हुआ पडिलेहित्तए प्रतिलेखना करने के लिए, वस्त्रादि उपकरण की जांच करने के लिए पडिलेहित्ता प्रतिलेखन करने वाला, जांचने वाला पडिलोमाहिं प्रतिकूल पडिवज्जति प्राप्त कर लेता है पडिवन्नस्स प्रतिपन्न, स्वीकार करने वाले पडिविरयं जिसने संसार से विरक्त होकर साधु-वृत्ति ग्रहण की है पडिविसज्जित्ता प्रतिविसर्जन कर अर्थात् बिदा कर पडिविसज्जेति बिदा करता है पडिसंवेदंति=अनुभव करते हैं पडिसुण(णे) ई-सुनते हैं पडिसुणित्तए-सुनने के लिए पडिसुणेज्जा सुनेगा पडिसेवमाणे सेवन करते हुए पडिहणित्ता प्रतिहनन करने वाला पढमा पहली पणग=पांच रंग के फूल पणस्सति=नाश हो जाती है पणिय-गिहाणि पण्य घर, पंसारी की दुकानें पणिय-सालाओ=पण्य शालाएं, फुटकर ___माल बेचने वालों की दुकानें पणिहिए छल से, कपट से पण्णत्ता प्रतिपादन किए हैं पण्णत्ताओ प्रतिपादन की है पण्णत्ते प्रतिपादन किया है पण्णाणे-नियडि-पण्णाणे देखो पण्णे-नाहिय-पण्णे देखो पतंग-विहिया पंगग की चाल के समान अनियत वृत्ति से भिक्षा करना, गोचरी का एक भेद पत्त-भोयणं पत्तों का भोजन पत्तिएज्जा विश्वास करे पत्तियत्तए विश्वास करने की पधारंति=(हृदय में) धारण करते हैं पधारित्ता धारण कर पभार-गएहिं नमे हुए, झुके हुए पभासमाणे शोभायमान होता हुआ पभू–सामर्थ्यशाली पयण-पयावणाओ=अन्नादि पकाने और पकवाने से पयलायंति=प्रचला नाम वाली निद्रा लेते हैं परंसि (लोगंसि)=पर (लोक) में परक्कमेज्जा पराक्रम करे पर-पाण-परियावण-कडा दूसरे के प्राणों ___ को तपाने वाले । । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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