Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 558
________________ २२ अर्थात् सर्वोत्तम योग-रूपी सम्पत्ति पओद-लट्ठि=चाबुक पओद - धरे = चाबुक वाले पंक - बहुले = पाप रूपी कीचड़ से आवेष्टित पंच-पांच दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् पंचिंदियाणं=पञ्चेन्द्रियों को, पांच इन्द्रियनाक, कान, आंख, जिहा और स्पर्श वाले जीवों को पंत - कुलाणि= अधम अर्थात् नीच कुल में उत्पन्न पंताई = अन्त प्रान्त आहार अर्थात् उच्छिष्ट या भोजन करते हुए शेष रहा हुआ अन्न पकुव्वइ = ( उपार्जना) करता है पक्खिते (समाणे) = प्रक्षिप्त किये जाने पर, फेंके जाने पर पक्खिय-पोसहिएसु = पक्ष के अन्त में किये जाने वाले पौषध अर्थात् उपवास के दिनों मे पगाढं = अत्यन्त कठोर या तीक्ष्ण पग्गहिय= ग्रहण किया हुआ पच्चक्खाइत्ता=प्रत्याख्यान कर अर्थात् पाप का त्याग कर पच्चक्खाण-पोसहोववासाइं = प्रत्याख्यान और पौषध उपवास पच्चणुभवमाणा=अनुभव करते हुए, भोगते हुए पच्चपिणंति = (महाराज से) निवेदन करते हैं पच्चपिणाहि = निवेदन करो Jain Education International पच्चायाति = उत्पन्न होता है पच्चायंति = ( जीव परलोक में) उत्पन्न होते हैं पच्चुद्धरित्ता = प्रत्युद्धार करने वाला पच्चोरुभति = प्रत्यारोहण करता है, चढ़ता है पच्चोसकित्तए = पीछे हटना पच्छा=पीछे पच्छाउत्ते=पीछे उतारा हुआ, साधु के भिक्षा मांगने को आने के बाद चूल्हे से उतारा हुआ पच्छागमणेणं=आने के पीछे पज्जत्तगाणं = पर्याप्ति - पूर्ण (जीवों के) पज्जवे = मन के पर्यवों को =सा. द्रव्य गुण का रूपान्तर होना पट्ठविय - पुव्वाइं = पहले से ही आत्मा में स्थापित किये हुए पट्ठवियाइं = आत्मा में स्थापन किये हुए पडल=समूह, झुंड पडिगया = चली गई पडिग्ग (गा) हित्तए = ग्रहण करने के लिए पडिगाहित्ता = लेकर पडितप्पइ = सेवा नहीं करता, सन्तुष्ट नहीं करता पडिनिक्खमइ = चले जाते हैं पडिपुण्णिदिय= पूर्ण इन्द्रियों वाला पडिपुणे = प्रतिपूर्ण, सम्पूर्ण, पूरा पडिबाहिरं = राज्य से बाहर कर=सा. अधिकार से अनधिकारी (बनाना) पडिमा=उवासग-पडिमा देखो पडिमा = प्रतिमा के, प्रतिज्ञा के For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576