Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 556
________________ २० दोच्चपि = दो बार दोच्चा = दूसरी दोवि=दोनों दोसं= दोषों को दोस - निघायणा - विणाए = दोष-निर्घात विनय, दोष नाश करने का विनय, विनय - प्रतिपत्ति का एक भेद धंसिया = ध्वस करके धंसेइ = कलङ्कित करता है धम्म (म?) ट्ठी=धर्मार्थी धम्मियं = धार्मिक, धर्म-कार्यों में काम आने वाला धम्मे= धर्म में धरणी-तलं = धरातल धरिज्जमाणेणं=धारण किए हुए धिती = धृति, धैर्य धुवं=निश्चित रूप धूत- बहुले = प्राचीन कर्मों से बंधा हुआ धूमेण = धूम से, धुँए से धूया=कन्या नक्क छिन्नयं = नाक काटना नगरं, रे= नगर नगर - गुत्तियं = नगर के रक्षकों को नदं = शब्द नमंसइ=नमस्कार करता है दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् नमंसित्ता = नमस्कार कर नयइ = शब्द करता है नयण - वसन - दंसण-वदन जिब्भ उप्पाडियं = इसके नेत्र, वृषण, दांत, मुख और जिह्वा को उत्पाटन करो Jain Education International नयरी = नगरी नयवं = न्याय करने वाला मन्त्री नरए = नरक लोकों में नरग - धरणी-तले = नरक के धरातल में नरगा= नरक लोक नरय-वेयणं=नरक की वेदना अर्थात् कष्ट नरवति= राजा नागवरा = श्रेष्ठ हाथी नागा = हाथी नाम=नाम वाला नाम - गोत्त (य) स्स=नाम और गोत्र का नाम - गोयं = नाम और गोत्र नायए = ज्ञाति अर्थात् जाति से सम्बन्ध रखने वाला, जातीय सम्बन्धी नायगं= नायक को, नेता को नाय - विधि- अपनी ही जाति के लोगों में भिक्षावृत्ति करना नाहिय- दिट्ठि = नास्तिक दृष्टि वाला नाहिय - पण्णे = नास्तिक बुद्धि वाला नाहिय-वाइ= नास्तिक-वादी निक्खते ( समाणे ) = निकलने पर, जाने पर निक्खेवणा= आचार - भंड-मत्त देखो निगच्छइ = निकलते हैं निगमस्स = व्यापारियों के । सा. जिस नगर में व्यापारी बहुत रहते हों उसके, व्यापारियों के निवास स्थान के निगूहिज्जा = छिपाए निग्गंथा (त्था), थाणं - राग-द्वेष की For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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