Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 554
________________ १८ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दलयह-दो दवग्गि-दद्धयं दावाग्नि में जला-हुआ दव-दव चारि=धम-धम की आवाज से शीघ्र चलने वाला दविण्ण=दर्वी या की से दारए-दारक दारगं-पेज्जामाणीए बच्चे को दूध पिलाती दंडं-गरुय-दंड देखो दंड-गरुए भारी दंड देने वाला दंड-पुरेक्खडे-प्रत्येक बात में दण्ड को आगे रखने वाला दंडमासी=सदा दंड के लिए तत्पर दंडायइयस्स-दण्डासन करने वाला, अर्थात् दण्ड के समान लम्बा लेट कर धर्म-ध्यान आदि करने वाला दंडेणं-दण्ड अर्थात् डण्डे से दंडेह-दण्ड दो दंत-कट्ठ दातुन, कसाय-दंतकट्ठ देखो दंतस्स इन्द्रियों को दमन करने वाले दंसणं-दर्शन दंसेंति दर्शन देते हैं दग-मट्टीएसचित्त जल वाली मिट्टी, गीली मिट्टी दग-लेवे जल का लेप | सा. नाभि की गहराई तक पानी में उतरना दठूण देखकर दड्ढेसु-जल जाने पर दड्ढाणं जले हुए दत्ति-दत्ति, दात, अन्न या पानी की निरन्तर धारा दब्भ-वत्तियं कुशा आदि से काटना दर(रि) सणावरणं दर्शनावरणीय (कर्म) दल देता है दलइत्ता देकर दलमाणीए देती हुई से दलयति देता है दलयंति देते हैं दारियं-लड़की को दारियत्ताए कन्या रूप से दारिया कन्या, लड़की दारु काष्ठ, लकड़ी दारे-स्त्रियों को दासी-दासा=दासी और दास दाहिणगामिए दक्षिण दिशा (के नरक) में जाने वाला दाहिण-गामि नेरइए दक्षिणगामी नारकी दिगिच्छाए भूख से दिज्जमाणं दिया जाता हुआ दिट्ठ-पुव्वगताए जिसने धर्म नहीं देखा उसको इस प्रकार धर्म की ओर आकर्षित करना जिससे उसे यह पहले देखा हुआ जैसा प्रतीत हो दिट्ठ-पुव्वगं दृष्ट-पूर्वक जिसने सम्यग ज्ञान और दर्शन-रूप धर्म को देखा हुआ है दिया-दिन में दिव्वं प्रधान दिव्वं देव-सम्बन्धी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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