Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 555
________________ दिव्वा = देव-सम्बन्धी दीव - ताण-द्वीप के समान रक्षा करने वाले दीव - समुद्देसु = द्वीप और समुद्रों में दुक्कडाणं = दुष्कर्म, बुरे कर्म दुक्खं = कष्टकर दुक्खण = दुःख देना दुक्ख - दोय = दो प्रकार के अर्थात् शारीरिक और मानसिक दुःखों से दुक्खहियासं= दुःख - पूर्वक सहन की जाने वाली | दुक्खेति = दुःख देता है दुग्गं= दुर्गम दुचरिया = दुष्ट आरचण वाला, जिसकी दिनचर्या दुष्ट है दुच्चिण्णा=दुष्ट, अशुभ दुट्ठस्स- दुष्ट, अशुभ दुट्ठे= दुष्ट के दुट्ठे = दुष्ट अथवा द्वेषी शब्दार्थ कोष दुहं = दो के लिए दुति (ए) ज्जमाणे = जाते हुए दुधरं =भंगादि दुर्धर, अत्यन्त कठिनता से धारण किया जाने वाला दुप्पडियानंदा=दुष्ट कार्य से प्रसन्न होने वाला । सा. कठिनता से प्रसन्न होने वाला दुप्प (प ) मज्जियचारि = दुष्प्रमार्जितचारी अर्थात् अविधि से प्रमार्जन कर चलने वाला । असमाधि के तीसरे भेद का सेवन करने वाला दुप्पय = दो पैर वाला जीव, मनुष्य Jain Education International दुष्परिचया= दुष्ट संगति करने वाला दुम्मणा = दुर्मन, खिन्न-चिन्त दुयाण्हं=दो दिन दुरणुणेया = बुरी प्रकृति वाला अथवा दुष्टों का अनुगामी दुरहियास = दुःख से सहन किया जाने वाला दुल्लभ - बोहियए = दुर्लभ बोधिक अर्थात् कठिनता से समझने वाला दुवे = दो दुव्वया = बुरे व्रत करने वाला, बुरे आचरण वाला दुरसंचाराइं = कठिनता से जाने योग्य दुस्सीला = दुराचारी, बुरे स्वभाव वाला दुति - पलासए - दुतिपलाशक नाम वाला (उद्यान) देव - कुलाणि= देवकुल देव - जुइ-देवद्युति देवत्ताए=देव रूप देव - दंसणे = देव-दर्शन देव - लोएसु = देव - लोकों में देव - लोगाओ - देव - लोक से देवाणुप्पिया = देवों के प्रिय देवाणुभावं = देवानुभाव को, देवता के सामर्थ्य को १६ देविद्धिं=देवर्द्धि, देवताओं की ऋद्धि देवे = देव देसावगासियं = देशावकाशिक व्रत, दिशा तथा द्रव्य की मर्यादा - रूप श्रावक का एक व्रत For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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