Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 543
________________ - शब्दार्थ-कोष आलोएइ आलोचना करता है आवदमाणस्स सामने आने पर आवरिय-अवरुद्ध कर आवसहिया पत्तों की झोंपड़ियों में रहने वाले आवाहंसि व्याधि (रोग) में आविट्ठे युक्त आविद्धमो=(क्या) करें आवेढेइ-आवेष्टित करता है आस घोड़ा आसगस्स मुख को आसन्नं अत्यन्त समीप होकर आसयइ अभिलाषा अथवा भोग करता है आसस्स अश्व अर्थात् घोड़े के आसायणा=आशातना, विनय-मर्यादा का उलंघन आसायणाओ=आशातनाएं आसायणिज्जा आस्वादनीय आसिय-सींच कर आहट्टु (साधु के) सन्मुख लाया गया आहम्मिए अधार्मिक आहरेमो (क्या) लावें आहाकम्म आधा-कर्म, साधु के लिए तैयार भोजन आहारित्ता खाता है, खाने वाला आहिय-दिट्ठी आस्तिक-दृष्टि आहिय-पन्ने आस्तिक-प्रज्ञ आहिय-वाई-आस्तिक-वादी इंगाल-कम्मंताणि कोयले के ठेके इच्छइ चाहता है इणामेव प्रत्यक्ष है इतो-पुव्वंदीक्षा से पूर्व इत्थं इस प्रकार इत्थिका स्त्री, स्त्रियां इत्थि-गुम्म-परिवुडे स्त्रियों के समूह से घिरा हुआ इत्थि-तणए, यं-स्त्री-तनु इत्थि-भोगाई-स्त्री-भोग इत्थी-विसय-गेहीए स्त्री-विषयक सुखों में लोलुप रहने वाला इत्थीओ स्त्रियां इमा=यह इमाईये इमेतारूवे इस प्रकार का इरिया-समियाणं-ईया-समिति वाले इरिया-समिया ईर्या-समिति वाले इह यह लोक इहेव-इसी लोक में ईसरी-कए ईश्वर अर्थात् समर्थ-शाली .. बनाया हुआ ईसरेण ईश्वर ने, समर्थ व्याक्ति ने ईसा-दोसेण ईर्ष्या-दोष से ईहा-मइ-ईहा=मति ईहा-मइ-संपया विशेष अवबोध रूप ज्ञान, अवग्रह-मति से देखी हुई वस्तु के विषय . में विचार करना, मति-सम्पदा का एक भेद | उक्कंचण-घूस, घूस लेने वाला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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