Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 546
________________ 90 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् एवं इसी प्रकार कण्हुई-रहस्सिया=किसी भी कार्य में एसणाऽसमितेः-एषणा समिति के विरुद्ध रहस्य (भेद) रखने वाले चलने वाला कप्पति=उचित है एसणा-समियाणं एषणा समिति वाले अर्थात् कप्परुक्खे(च)इव कल्प वृक्ष के समान निर्दोष आहार ग्रहण करने वाले कम्मं कर्म ओयं निर्मल, राग-द्वेष-रहित कम्मंता अशुभ कर्म के फल देने वाले । ओलंभिया अवरुद्ध कर, रोक कर सा. कर्म के निमित्त-कारण ओहं संसार-रूपी समुद्र कम्म=आक्रमण कर ओहारइत्ता शंका-रहित भाषा बोलने वाला, कम्म-बीएसु-कर्म-रूपी बीज असमाधि के ग्यारहवें स्थान का सेवन । कम्माइं=कर्म करने वाला कय-कोउयं-मंगल-पायच्छित्ते जिस ने । ओहि अवधि (रक्षा और सौभाग्य के लिए) मस्तक पर ओहि-णाणे अवधि-ज्ञान, ज्ञान का तिलक, (विघ्न विनाश के लिए) मङ्गल पांचवां भेद । तथा (दुःस्वप्न और अपशकुन दूर करने ओहि-दसणे अवधि-दर्शन के लिए) प्रायश्चित्त-पैर से भूमि-स्पर्श औरालियं=औदारिक, स्थूल (शरीर) आदि क्रियाएं की कंख काङ्क्षा, अभिलाषा कयरे कौन से कंखियस्स=काङ्क्षा (अभिलाषा, लोभ) कय-बलिकम्मे जिसने बलि-कर्म अर्थात् वाले की बलवर्द्धक व्यायाम (कसरत) किया है कंठे गले में कय-विक्कय-मासद्ध-मासरूपग-संववकक्खङ-फासा कर्कश अर्थात् कठोर स्पर्श हाराओ=खरीदना, बेचना. मासार्द्ध और वाले मासरूपक व्यवहार से कज्जंति किये जाते हैं कय-सोभे शोभायमान कटि-सुत्तयं कटि-सूत्र, मेखला, कमर का कयाई कदाचित् किसी समय गहना करण-करावणाओ=(हिंसा) करने और कटु-करके कराने से कट्ठ-कम्मंताणि लकड़ी के कारखाने कर-यलं हाथ जोड़कर कण्ह-क्खिए कृष्णपाक्षिक अर्थात् वह व्यक्ति | करावणाओ=करण देखो जो अर्ध पुद्गल परावर्तन काल से भी अधिक | करित्ता=(उक्त कार्य) करा कर संसार-चक्र में भ्रमण करता रहे करेइति करता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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