Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 541
________________ असंगहिय-परिजण - संगहित्ता - असंग्रहीत शिष्य आदि का संग्रह करने वाला असंपगहिय- अप्पा = अहंकार न करने वाला असणं=अन्न असच्चवाई = झूठ बोलता है । असमाहि-ठाणा - असमाधि के स्थान असमिक्खियकारी = बिना विचारे काम करने वाले शब्दार्थ-कोष असमुपन्न- पुव्वे, व्वाई = जो पहले उत्पन्न नहीं हुआ है असासत, या = अनित्य, विनाशी असिणाण = बिना स्नान किये असुइविसा=मल-मूत्रादि से बीभत्स अरिस (लोयंसि ) = इस लोक में अहम्म- क्खाई - अधर्म में प्रसिद्ध अहम्म- जीवी = अधर्म से जीवन यात्रा करने वाला अहम्म- पलज्जणे = अधर्म उत्पन्न करने वाला अहम्म - पलोई = अधर्म देखने वाला अहम्म - रागी = अधर्म में प्रेम करने वाला अहम्म-सील-समुदायारे= अधार्मिक शील और समुदाचार धारण करने वाला अहम्माणुए=अधर्म का अनुगामी अहम्मिए = अधार्मिक क्रियाओं को सेवन करने वाला अहम्मिट्ठे = जिसको अधर्म प्रिय हो अहम्मिया = अधार्मिक अहा- कप्पं प्रतिमा के आचार के अनुसार अहा- गुरु = गुरुओं का उचित रीति से Jain Education International अहा- तच्चाणं-वास्तविक बात अहा - तच्चं यथातथ्य, सत्य, तत्त्व के अनुसार अहा - थामं = यथाशक्ति अहा - पणिहितं हि = यथा- प्रणिहित अर्थात् जिस स्थिति में हैं उसी में अहा- मग्ग = प्रतिमा के ज्ञानादि मार्ग के अनुसार अहारिहं = यथायोग्य अहा - लहुयंसि = छोटे से अहावरा = इसके अनन्तर अहा - विहि, धि = यथा-विधि अहा - सुत्तं यं = सूत्रों के अनुसार अहा- पडिरूवं = उचित, यथायोग्य अहिए = अहितकारी अहि- गमेणं = सेवा से अहियासेइ = परीषहों को सहन करता है अहे = अधो लोक अहे-नीचे अहे - आराम-गिहंसि = उद्यान में स्थित घर में अहो - विस्मय है अहोराइंदिया = एक दिन और एक रात की उपासक - प्रतिमा आइक्खति = कहते हैं आइगरे= धर्म के प्रवर्त्तक आइ (दि) द्वं=आज्ञा, आज्ञा के अनुसार 'आउक्खएणं= आयु-क्षय होने के कारण आउट्टिता=पीड़ा पहुंचाने वाला, दुःख देने वाला For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org

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