Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 538
________________ २ अच्छिदित्ता-विच्छेद करने वाला अजाणं=न जानता हुआ अज्जो = हे आर्यो अज्झयण=अध्ययन दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् अज्झवितव्व, व्वा = आदेश देना चाहिए अज्झोववण्णा= (विषय में) परम आसक्त अद्वं = समाचार, प्रस्तुत विषय अट्ठमेणं=अष्टम, आठवें अट्ठ- विहा=आठ प्रकार की अट्ठीण = अस्थियों से, हड्डियों से अट्ठे = सार्थक और सत्य है, सा. अर्थ, भाव अड्ढाइज्जेसु=अढ़ाई अणंत - णाणीणं- अनन्त ज्ञान वाले अणंतर-हिआए= सचित्त, जिसके ऊपर आसन आदि न बिछा हो अणंत=अनन्त अणगारस्स=अनगार अर्थात् गृह आदि से रहित साधु का अणगारियं = साधु - वृत्ति अणणुतावित्ता - बिना पश्चात्ताप किये अणणुपालेमाणस्स=उचित रीति से पालन न करनेवाले का अणुवित्ता = बिना क्षमापन के अर्थात् प्रार्थना से दोष को क्षमा कराए बिना अणसणाइं= अनशन - व्रत को अणाणुगामियत्ताए=आगामी काल के सुख लिए नहीं । सा. भव- परम्परा में साथ न रहने वाला के अणापुच्छित्ता = बिना पूछे Jain Education International अणायगस्स = किसी दूसरे नायक से रहित स्वतन्त्र राजा की अणालोइए बिना आलोचना किये अणिदाणस्स=अनिदान अर्थात् फल की आशा - रहित कर्म का अणियत - वित्ती= अप्रतिबद्ध होकर विहार करने वाला अणिसरे = अनीश्वर व्यक्ति को अणिसेस्साए=अकल्याण के लिए | अणिसिद्वं = साधारण पदार्थ बिना आज्ञा के लिया हुआ अणिसित्तोवसिए= राग-द्वेष-रहित होकर अणिसियं = निश्राय अर्थात् ममत्व या प्रतिबन्ध से रहित अणिसिय- वयणे = प्रतिबंध-रहित वचन बोलने वाला अणुजाणह=आज्ञा दो अणुजाणेज्जा = आज्ञा देकर अणुट्टिया = उठने के पहले अणुण्णवणी = स्थानादि के लिए आज्ञा लेने की भाषा अणुत्तरे = सर्व प्रधान अणुपस्सति = देखता है अणुपालित्ता = पालन करने वाला अणुप्पणाणं=अनुत्पन्न अणुप्पविट्ठस्स = प्रवेश करने पर अणुप्पविसइ = प्रवेश करता है अणुबूहित्ता = कथन करने वाला अणुलोम- काय-किरियत्ता-अनुकूल काय - क्रिया करने वाला For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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