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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
जितने भी श्रमणोपासक गुण कहे हैं उनसे सम्पन्न होता है तथा पडिलाभेमाणे - श्रमण निर्ग्रन्थों को आहार और जल आदि देता हुआ विहरइ-विचरता है से णं-वह फिर एयारूवेणं - इस प्रकार के विहारेणं-विहार से विहरमाणे- विचरता हुआ बहूणि वासाणि - बहुत वर्षों तक समणोवासग परियागं- श्रमणोपासक के पर्याय को पाउणइ पालन करता है और पाउ णित्ता - पालन कर बहूई भत्ताइं- क्या बहुत भक्तों का पच्चक्खाइत्ता - प्रत्याख्यान करता है ? गुरु कहते हैं हंता-हॉ, पच्चक्खाइत्ता - प्रत्याख्यान कर और आबाहंसि - व्याधि (रोग के) उप्पन्नंसि - उत्पन्न होने पर वा अथवा अणुप्पन्नंसि - उत्पन्न न होने पर बहु भत्ता - बहुत से भक्तों के अणसणाइं- अनशन व्रत को छेदेइ - २त्ता - छेदन करता है और छेदन कर आलोइय-आलोचन कर पडिक्कंते- पाप से पीछे हट कर समाहिपत्ते -समाधि प्राप्त करके कालमासे - काल मास में कालं किच्चा - काल करके अण्णयरेसु - किसी एक देवलोएसु-देव-लोक में देवत्ताए - देव - रूप से उववत्तारो भवति उत्पन्न हो जाता है । समणाउसो - हे आयुष्मन् ! श्रमण ! एवं खलु - इस प्रकार निश्चय से तस्स - उस णिदाणस्स - निदान कर्म का इमेयारूवे - यह इस तरह का पापफलविवागे- -पाप-रूप फल- विपाक हैं जेणं - जिससे वह निदान कर्म करने वाला मुंडे भवित्ता - मुण्डित होकर आगाराओ - घर से निकल कर अणगारियं - अनगार (गृह - रहित साधु ) वृत्ति को पव्वइत्तए - स्वीकार करने को णो संचाएति - समर्थ नहीं होता अर्थात् दीक्षा ग्रहण नहीं कर
सकता ।
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दशमी दशा
मूलार्थ -वह जीव और अजीव को जानने वाला श्रमणोपासक होता है । यावत् श्रमण और निर्ग्रन्थों को आहार और जल आदि देता हुआ विचरता है । फिर वह इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक के पर्याय को पालन करता है और पालन कर बहुत से भक्तों (भोजन) का प्रत्याख्यान (त्याग) कर देता है, रोगादि के उत्पन्न होने अथवा न होने पर बहुत से भक्तों के अनशन व्रत को छेदन कर और उसकी अच्छी तरह आलोचना कर पाप से पीछे हट जाता है और समाधि प्राप्त करता है; समाधि प्राप्त कर कालमास में काल करके किसी एक देव-लोक में देव रूप से उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार, हे आयुष्मन् ! श्रमण ! उस निदान का इस प्रकार पाप रूप फल हुआ,
जहाँ
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