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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
जिससे उसका करने वाला सब प्रकार से मुण्डित होकर घर से निकल अनगार वृत्ति को ग्रहण करने के लिए समर्थ नहीं हो सकता अर्थात् निदान-कर्म के प्रभाव से वह साधु- वृत्ति नहीं ले सकता ।
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टीका - इस सूत्र में आठवें निदान-कर्म का उपसंहार किया गया है । श्रावक-धर्म से युक्त होकर वह श्रमणोपासक बन जाता है । उस में श्रमणोपासक के सब गुण विद्यमान होते हैं । इस प्रकार बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक के पर्याय को पालन करता हुआ वह अन्त समय अनशन - व्रत द्वारा मृत्यु प्राप्त कर समाधिपूर्वक किसी एक देव - लोक में देव-रूप से उत्पन्न हो जाता है । किन्तु उस निदान - कर्म के प्रभाव से सर्व-वृत्ति-रूप चारित्र धारण नहीं कर सकता, क्योंकि उसने चरित्रावरणीय (शुद्ध चरित्र को छिपाने वाले) कर्म का क्षयोपशम (नाश और शान्ति) भाव भली भांति नहीं किया जिससे वह घर से निकल कर अनगारवृत्ति ग्रहण कर सके । निर्ग्रन्थ-प्रवचन को ठीक समझते हुए भी उसके अनुसार सर्ववृत्ति - रूप चारित्र के धारण करने में उसके भावों में असमर्थता दीख पड़ती है । सिद्ध यह हुआ कि चाहे किसी प्रकार का निदान कर्म हो उसके छोड़ने में ही कल्याण है ।
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अब सूत्रकार क्रम - प्राप्त नौवें निदान - कर्म का विषय कहते हैं :
एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते जाव से य परक्कममाणे दिव्व- माणुस्सएहिं काम - भोगेहिं निव्वेयं गच्छेज्जा, माणुसगा खलु काम भोगा अधुवा असासया जाव विप्पजहणिज्जा दिव्वावि खलु काम भोगा अधुवा जाव पुणरागमणिज्जा । संति इमस्स तवनियम जाव वयमवि आगमेस्साणं जाई इमाइं भवंति अंत- कुलाणि वा पंत कुलाणि वा तुच्छ कुलाणि वा दरिद्द कुलाणि वा किवण - कुलाणि वा भिक्खाग-कुलाणि वा एसिं णं अण्णतरंसि कुलंसि पुमत्ताए एस मे आया परियाए सुणीहडे भविस्सति । से तं साहू |
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