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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
४५१
फिर सूत्रकार इसी विषय से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं :
तते णं से भगवं अरहा भवति, जिणे, केवली, सव्वण्णू, सव्वदंसी, सदेवमणुयासुराए जाव बहूई वासाई केवलीपरियागं पाउणइ-रत्ता अप्पणो आउसेसं आभोएइ-रत्ता भत्तं पच्चक्खाएइ-रत्ता बहूई भत्ताई अणसणाई छेदेइ-२त्ता तओ पच्छा चरमे हिं ऊसास-नीसासेहिं सिज्झति जाव सव्व-दुक्खाणमंतं करेति ।
ततो नु स भगवानर्हन् भवति, जिनः, केवली, सर्वज्ञः, सर्वदर्शी, सदेवमनुजासुरायां (परिषदि) यावद् बहूनि वर्षाणि केवलि-पर्यायं पालयति, पालयित्वात्मन आयुश्शेषमाभोगयति, आभोग्य भक्तं प्रत्याख्याति, प्रत्याख्याय बहूनि भक्तानि, अनशनानि छिनत्ति, छित्त्वा ततः पश्चात् चरमैरुच्छ्वासनिश्वासैः सियति यावत्सर्वदुःखानामन्तं करोति ।
पदार्थान्वयः-तते णं-इसके अनन्तर से-वह भगवं-भगवान् अरहा–अर्हन् भवति–होता है जिणे-जिन केवली-केवली सव्वण्णू-सर्वज्ञ और सव्वदंसी-सर्व-दर्शी होता है फिर वह सदेवमणुयासुराए-देव, मनुष्य और असुरों की परिषद् में जाव-यावत् उपदेश आदि देता है बहूई-बहुत वासाइं-वर्षों तक केवली परियागं-केवलि-पर्याय को पाउणइर-त्ता-पालन करता है और पालन करके अप्पणो अपने आउसेसं-आयु-शेष को आभोएइ-रत्ता-अवलोकन करता है और अवलोकन कर भत्तं-भक्त को पच्चक्खाएइ-रत्ता-प्रत्याख्यान करता है और प्रत्याख्यान करके बहूइं-बहुत भत्ताई-भक्तों के अणसणाई-अनशन-व्रत को छेदेइ-रत्ता-छेदन करता है और छेदन करके तओ पच्छा-तत्पश्चात् चरमेहि-अन्तिम ऊसास-नीसासेहिं- उच्छ्वास और निश्वासों से सिज्झति-सिद्ध हो जाता है जाव-यावत् सव्वदुक्खाणं-सब दुःखों का अंतं करेति-अन्त करता है ।
मूलार्थ-तत्पश्चात् वह भगवान्, अर्हन्, जिन, केवली, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी होता है । फिर वह देव, मनुष्य और असुरों की परिषद् में उपदेश आदि करता है । इस प्रकार बहुत वर्षों तक केवलि-पर्याय का पालन करके
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