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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
यहाँ प्रश्न उपस्थित हो सकता है कि आयति स्थान किसे कहते हैं ? उत्तर में कहा जाता है कि "आयतिर्नामोत्तरकालः 'आयतिस्तूत्तरः काल' इति वचनात् तस्य स्थानं पदमित्यर्थः" जिसका परिणाम उत्तर-काल अर्थात् जन्मान्तर में हो उसी को आयति - स्थान कहते हैं ।
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श्री भगवान् ने इस दशा का वर्णन अर्थ, हेतु और कारण के साथ किया । आत्मागम की अपेक्षा सूत्र के साथ और व्याख्या की अपेक्षा अर्थ के साथ तथा तदुभय (सूत्र और अर्थ ) के साथ पुनः - २ उक्त विषय का उपदेश किया। साथ ही यह भी बताया कि "ज्ञानक्रियाभ्यां मोक्षः" अर्थात् सम्यग् ज्ञान और सम्यक् क्रिया (चारित्र) से ही मोक्ष-पद की उपलब्धि हो सकती है, अन्यथा नहीं । न केवल ज्ञान से ही मोक्ष हो सकता है न केवल क्रिया से ही, अपितु जब ज्ञान और क्रिया दोनों ही एक बार एकत्रित होते हैं तभी आत्मा मोक्ष-रूपी ध्येय में तल्लीन हो सकता है । अतः श्री भगवान् ने इस विषय पर विस्तृत उपदेश दिया कि हे आर्यो ! पण्डित - वीर्य से कर्म-क्षय कर सकते हो और बाल-वीर्य से संसार की वृद्धि तथा बाल और पण्डित - वीर्य से साध्य की ओर जा सकते हो । किन्तु पण्डित - वीर्य तभी हो सकता है जब निदान - रहित क्रियाएं की जाएंगी । फिर उसी पण्डित - वीर्य से आठ प्रकार के कर्मों को क्षय कर आत्मा मोक्ष-पद की प्राप्ति कर सकता है । इस प्रकार श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के बार - २ के उपदेश को सुन कर सभा हर्षित होती हुई भगवान् की आज्ञा के अनुसार आराधना में तत्पर हो गई ।
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श्री सुधर्मा स्वामी श्री जम्बू स्वामी के प्रति कहते हैं - हे शिष्य ! जिस प्रकार मैंने श्री भगवान् के मुख से श्री दशाश्रुत-स्कन्धसूत्र की आयति नाम वाली दशवीं दशा का अर्थ श्रवण किया था उसी प्रकार तुम्हारे प्रति कहा है । इसमें अपनी बुद्धि से मैंने कुछ भी नहीं कहा ।
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