Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 507
________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् । टीका - इस सूत्र में कहा गया है कि निदान - कर्म करने के अनन्तर उग्रादि कुलों में उत्पन्न वह निर्ग्रन्थ धर्म सुनता है, उस पर श्रद्धा करता है, शील व्रत और पौषधोपवास आदि ग्रहण करता है किन्तु दीक्षा नहीं ले सकता, शेष सुगम ही है । ४३६ फिर सूत्रकार इसी से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं : से णं समणोवासए भवति अभिगतजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे विहरइ । से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे बहूणि वासाणि समणोवासग परियागं पाउणइ २त्ता बहूई भत्ताई पच्चक्खाइज्जा ? हंता पच्चक्खाइत्ता आबाहंसि उप्पन्नंसि वा अणुप्पन्नंसि वा बहूइं भत्ताइं अणसणाइं छेदेइ-रत्ता आलोइय पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ता उववत्तारो भवति । एवं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स इमेयारूवे पावफलविवाके जेणं णो संचाएति सव्वाओ सव्वत्ताए मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए । स नु श्रमणोपासको भवति । अभिगतजीवाजीवो यावत्प्रतिलाभयन् विहरति । स न्वेतद्रूपेण विहारेण विहरन् बहूनि वर्षाणि श्रमणोपासक-पर्यायं पालयति, पालयित्वा बहूनि भक्तानि प्रत्याख्याय ? हन्त ! प्रत्याख्याय आबाधायामुत्पन्नायामनुत्पन्नायां वा बहूनि भक्तान्यनशनानि छिनत्ति, छित्त्वा, आलोच्य प्रतिक्रान्तः समाधिं प्राप्तः कालमासे कालं कृत्वान्यतरेषु देवलोकेषु देवतयोपपत्ता भवति । एवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! तस्य निदानस्यैतद्रूपः पाप-फल- विपाको येन नो शक्नोति सर्वतः सर्वथा मुण्डितो भूत्वागारादनगारितां प्रव्रजितुम् । Jain Education International पदार्थान्वयः - से णं-वह समणोवासए - श्रमणोपासक भवति होता है अभिगतजीवाजीवे - जीव और अजीव को जानने वाला होता है जाव - यावत् और पूर्वोक्त For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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