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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
फिर सूत्रकार उक्त विषय से ही सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं :
तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्सवि जाव पडिसुणिज्जा ? हंता पडिणिज्जा से णं सद्दहेज्जा जाव ? हंता ! सद्दहेज्जा । से णं सीलवय जाव पोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा ? हंता ! पडिवज्जेज्जा | से णं मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारिय पव्वज्जा णो तिणट्टे समट्टे ।
दशमी दशा
तस्य नु तथाप्रकारस्य पुरुषजातस्यापि - यावत् प्रतिश्रृणुयात् ? हन्त ! प्रतिश्रृणुयात् । स नु श्रद्दध्यात् ? हन्त ! श्रद्दध्यात् । स नु शीलव्रत यावत् पौषधोपवासानि प्रतिपद्येत ? हन्त ! प्रतिपद्येत । स नु मुण्डो भूत्वा आगारादनगारितां प्रव्रजेत् नायमर्थः समर्थः ।
पदार्थान्वयः - तस्स उस णं-वाक्यालङ्कारे तहप्पगारस्स - उस तरह के पुरिसजातस्सवि-पुरुष को भी जाव - यावत् श्रमण या श्रावक यदि धर्म सुनावें तो क्या वह पडिणिज्जा - उसको सुनेगा ? हंता-गुरु कहते हैं हां, पडिणिज्जा - सुनेगा से णं-वह फिर सद्दहेज्जा-श्रद्धा करेगा ? जाव- यावत् विश्वास आदि करेगा ? हंता - हां सद्दहेज्जा-श्रद्धा करेगा से णं-वह फिर सील-वय-शील व्रत जाव- यावत् पोसहोववासाइं- पौषधोपवास आदि को पडिवज्जेज्जा - ग्रहण करेगा ? हंता-हां पडिवज्जेज्जा ग्रहण करेगा से णं-वह फिर मुंडे भवित्ता - मुण्डित होकर आगाराओ - घर से निकल कर अणगारियं - अनगारिता (दीक्षा में) पव्वज्जा - प्रव्रजित होगा णो तिणट्टे समट्ठे-वह बात सम्भव नहीं है अर्थात् वह दीक्षा ग्रहण नहीं कर सकता ।
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मूलार्थ - इस प्रकार के उस पुरुष को यदि कोई श्रमण या श्रावक धर्म-कथा सुनावे वह उस पर श्रद्धा और विश्वास करेगा ? हां, करेगा । क्या वह शीलव्रत यावत्पौषधोपवास आदि व्रतों को ग्रहण करेगा ? हां, ग्रहण करेगा किन्तु यह सम्भव नहीं कि वह मुण्डित होकर घर से निकल दीक्षा ग्रहण कर सके ।
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