________________
४१४
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
दशमी दशा
काम-भोगा अधुवा अणितिया असासता सडण-पडण-विद्धंसण-धम्मा उच्चार-पासवण-खेल-जल्ल-सिंघाणग-वंत-पित्त-सुक्क-सोणिय-समुभवा दुरूव-उस्सास-निस्सासा दुरंत-मुत्त-पुरीस-पुण्णा वंतासवा पित्तासवा खेलासवा पच्छा पुरं च णं अवस्सं विप्पजहणिज्जा ।
एवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! मया धर्मः प्रज्ञप्तः इदमेव निर्ग्रन्थ-प्रवचनं तथैव । यस्य न धर्मस्य निर्ग्रन्थो वा (निर्ग्रन्थी वा) शिक्षायै उपस्थितो विहरन् पुरा जिघित्सया यावदुदीर्ण-काम-भोगो विहरेत्, स च पराक्रमेत, स च पराक्रमन् मानुषकेषु कामभोगेषु निर्वेदं गच्छेत्, मानुषका खलु कामभोगा अधुवा अनित्या अशाश्वताः सडन-पतन-विध्वंसन-धर्मा उच्चारप्रश्रवण-श्लेष्म-यल्ल-सिंघाणक-वात-पित्त-शुक्र-शोणित-समुद्भवा दुरूपोच्छ्वासनिश्वासा दुरन्त-मूत्र-पुरीष-पूर्णा वान्ताश्रवाः पित्ताश्रवाः श्लेष्माश्रवाः पश्चात् पूर्वञ्च न्ववश्यं विप्रहेयाः ।
पदार्थान्वयः-समणाउसो-हे आयुष्मन् ! श्रमण ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से मए-मैंने धम्मे–धर्म पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है इणमेव-यही निग्गंथ-पावयणे-निर्ग्रन्थ-प्रवचन तहेव-पूर्ववत् जानना चाहिए अर्थात् सत्य है और सब दुःखों का नाश करने वाला है जस्स णं-जिस धम्मस्स-धर्म की सिक्खाए-शिक्षा के लिए उवट्टिए-उपस्थित होकर विहरमाणे-विचरता हुआ निग्गंथे-निर्ग्रन्थ वा अथवा (निग्गंथी-निर्ग्रन्थी) पुरादिगिच्छाए-पूर्व बुभुक्षा से जाव-यावत् उदिण्ण-काम-भोगे विहरेज्जा-काम-भोगों के उदय होने पर विचरण करे और से य-फिर वह परक्कमेज्जा -पराक्रम करे य-और से-वह परक्कममाणे-संयम-मार्ग में पराक्रम करता हुआ माणुस्से हिं-मनुष्य-सम्बन्धी काम-भोगेहि-काम-भोगों की ओर से निव्वेयं-निर्वेद (वैराग्य) को गच्छेज्जा प्राप्त हो जाय, क्योंकि माणुस्सगा खलु-निश्चय ही मनुष्य-सम्बन्धी काम-भोगा-काम-भोग अधुवा-अनिश्चित हैं अणितिया-अनित्य अर्थात् क्षणिक हैं असासया-अशाश्वत अर्थात् विनाशी हैं सडण-सड़ना पतण-गलना और विद्धंसणधम्मा-नाश होना इनका धर्म है उच्चार-विष्टा पासवण-मूत्र खेल-श्लेष्मा जल्ल-शरीर के मल और सिंघाणग-नासिका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org