Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrut Skandh Sutra Sthanakvasi
Author(s): Atmaram Maharaj
Publisher: Padma Prakashan

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Page 486
________________ ४१८ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा अब सूत्रकार उक्त विषय से ही सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं : एवं खलु समणाउसो! निग्गंथो वा (निग्गंथी वा) णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कते कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति । तं जहा-महिड्ढिएसु महज्जुइएसु जाव पभासमाणे अण्णेसिं देवाणं अण्णं देविं तं चेव जाव परियारेति । से णं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं तं चेव जाव पुमत्ताए पच्चायाति जाव किं ते आसगस्स सदति । __एवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! निर्ग्रन्थो वा (निर्ग्रन्थी वा) निदानं कृत्वा तत्स्थानमनालोच्य (ततः) अप्रतिक्रान्तः कालं कृत्वान्यतरेषु देव-लोकेषु देवतयोपपत्ता भवति । तद्यथा-महर्द्धिकेषु महाद्युतिकेषु यावत् प्रभासमानोऽन्येषां देवानाम् अन्यां देवीं यावत् परिचारयति । स नु ततो देवलोका-दायुःक्षयेण तच्चैव यावत् पुंस्तया प्रत्यायाति यावत् किं ते आस्यकस्य स्वदते । पदार्थान्वयः-समणाउसो-हे आयुष्मन् ! श्रमण ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से निग्गंथो वा-निर्ग्रन्थ अथवा (निग्गंथी-निर्ग्रन्थी) णिदाणं किच्चा-निदान-कर्म कर तस्स ठाणस्स-उसका उस समय अणालोइय-बिना आलोचन किये और उससे अप्पडिक्कंते-बिना पीछे हटे कालमासे-मृत्यु के समय कालं किच्चा-काल करके अण्णतरेषु-किसी एक देवलोएसु-देव-लोक में देवत्ताए-देव-रूप से उववत्तारो भवति-उत्पन्न होता है । तं जहा-जैसे-महिड्डिएसु-महा ऐश्वर्यशाली और महज्जुइएसु-अत्यन्त सुन्दर कान्ति वाले देवों के बीच में जाव-यावत् पभासमाणे-शोभायमान होता हुआ विचरता है और अण्णेसिं-दूसरे देवाणं-देवों की अण्णं-दूसरी देविं-देवी को तं चेव-पूर्ववत् ही तीनों प्रकार की देवियों को जाव-यावत् परियारेति-मैथुन-उपभोग में प्रवृत्त कराता है से णं-फिर वह ताओ-उस देवलोगाओ-देव-लोक से आउक्खएणं-आयु-क्षय होने के कारण तं चेव-शेष पूर्ववत् अर्थात् भव-क्षय आदि के कारण भोग और उग्र कुलों में से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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