________________
दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
और उस शाला में सदैव नाटक होते हैं और नाना प्रकार के वादित्र (बजते) रहते हैं | इस तरह वे मनुष्य सम्बन्धी उत्तमोत्तम भोगों को भोगते हुए विचरते हैं ।
'कुटाकार-शाला' के विषय में वृत्तिकार लिखते हैं-“कूटाकारशालायामिति-कूटस्येव गिरिशिखरस्येवाकारो यस्याः सा कूटाकारा, यस्या उपर्याच्छादनं गिरिशिखराकारं सा कूटाकारेण शिखरीकृत्योपलक्षिता शाला कूटाकारशाला, उपलक्षणञ्चैतत्प्रासादादीनाम् । कूटाकार-शाला-ग्रहणं निर्जनत्वेन प्रधान-भोङ्गत्वाख्यापनार्थम् । अर्थात् जिसकी छत पर्वत की चोटी के समान हो, उसको कूटाकार-शाला कहते हैं । निर्जनता के कारण कूटाकार-शाला का ग्रहण किया गया है, क्योंकि इस में विशेष भोगों का भोग होता है । शेष सूत्रार्थ सुगम ही है । ___उक्त सूत्र से सम्बन्ध रखते हुए ही सूत्रकार अब कहते हैं:- .
तस्सणं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अब्भुटुंति-भण देवाणुप्पिया! किं करेमो? किं उवणेमो ? किं आहरेमो? किं आविद्धामो ? किं भे हिय इच्छियं? किं ते आसगस्स सदति? जं पासित्ता णिग्गंथे णिदाणं करेति ।
तस्यन्वेकमप्याज्ञापयतो यावच्चत्वारः पञ्च वानुक्ता एवाभ्युपतिष्ठन्ति-भण देवानां प्रिय ! किं करवाम? किं किमुपनयाम? किमाहारयाम? किमातिष्ठाम? किं भवतां हृदिच्छितम् ? किं तवास्य-कस्य स्वदते? यदृष्ट्वा निर्ग्रन्थो निदानं करोति । .
पदार्थान्वयः-तस्स णं-उसके एगमवि-एक दास को भी आणवेमाणस्स-आज्ञा करने पर जाव-यावत् चत्तारि-चार पंच-पांच अवुत्ता चेव-बिना कहे ही अभुट्टेत्ति-कार्य करने के लिए उपस्थित हो जाते हैं देवाणुप्पिया-हे देव-प्रिय ! भण-कहिए किं करेमो-हम आपके लिये क्या करें ? किं आहरेमो-क्या भोजन आपको करावें? किं भे हिय इच्छियं-आपके हृदय में क्या इच्छा है ? किं भे आसगस्स सदति-आपके मुख को कौन सी वस्तु स्वादिष्ट लगती है जं-जिसको पासित्ता-देखकर णिग्गंथे-निर्ग्रन्थ णिदाणं-निदान कर्म करेति-करता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org