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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
प्रश्न यह उपस्थित होता है कि निर्ग्रन्थी केवल उक्त पुरुषों को देखने मात्र से ही किस प्रकार निदान कर्म करती है ? इसके समाधान में सूत्रकार स्वयं कहते हैं:दुक्खं खलु इत्थि - तणए, दुस्संचराई गामंतराई जाव सन्निवे संतरा । से जहा नामए अंब-पेसियाति वा मातुलिंग-पेसियाति वा अंबाडग-पेसियाति वा मंस-पेसियाति वा उच्छु-खंडियाति वा संबलि-फलियाति वा बहुजणस्स आसायणिज्जा पत्थणिज्जा पीहणिज्जा अभिलसणिज्जा एवामेव इत्थिकावि बहुजणस्स आसायणिज्जा जाव अभिलसणिज्जा, तं दुक्खं खलु इत्थित्तणए पुमत्ताए णं साहू |
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दुःखं खलु स्त्रीतनूः, दुःसञ्चराणि ग्रामान्तराणि यावत्स- न्निवेशान्तराणि । अथ यथानामकाम्र-पेशिकेति वा मातु-लिंग-पेशिकेति वा आम्रातक-पेशिकेति वा मांस-पेशिकेति वा इक्षु खण्डिकेति वा शाल्मलि - फलिकेति वा बहुजनस्यास्वादनीया, प्रार्थनीया, स्पृहणीया यावदभिलषणीयैवमेव स्त्रीकापि बहुजनस्यास्वादनीया यावदभिलषणीया । तदुःखं खलु स्त्री- तनूः, पुरुषत्वं
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साधु
पदार्थान्वयः - इत्थि-त्तणए - स्त्रीत्व संसार में दुक्खं खलु कष्ट - रूप है क्योंकि गामंतराई - एक गांव से दूसरे गांव में और सन्निवेसंतराई - एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव में दुरसंचाराइं - स्त्रियों का जाना कठिन होता है अर्थात् स्त्री एक स्थान से दूसरे स्थान में स्वच्छन्दता और निःसंकोच भाव से नहीं जा सकती क्योंकि से जहानामए - जिस प्रकार अंबपेसियाति- आम की फांक वा अथवा अंबाडग-पेसियाति- आम्रातक (एक फल जिसमें बहुत से बीज होते हैं) की फांक वा अथवा मंस-पेसियाति-मांस की फांक वा - अथवा संबलि-फलियाति - शाल्मली वृक्ष की फ़ली बहुजणस्स - बहुत से मनुष्यों की आसायणिज्जा-आस्वादनीय पत्थणिज्जा - प्रार्थनीय पीहणिज्जा-स्पर्धा करने के योग्य और अभिलसणिज्जा - अभिलषणीया होती हैं तं - इस लिये इत्थि-त्तणए - स्त्रीत्व दुक्खं - कष्ट रूप है पुमत्ताए णं- पुरुषत्व साहू - साधु है ।
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