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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
दशमी दशा
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__ अब सूत्रकार इस विषय में कहते हैं कि यानों के सुसज्जित होने पर महाराज श्रेणिक ने क्या कियाः___तते णं सेणिए राया भंभसारे जाण-सालियस्स अंतिए एयमटुं सोच्चा निसम्म हट्ठतुढे जाव मज्जण-घरं अणुप्पविसइश्त्ता जाव कप्परुक्खे चेव अलंकिए विभूसिए परिंदे जाव मज्जण-घराओ पडिनिक्खमइ-रत्ता जेणेव चेल्लणादेवी तेणेव उवागच्छइ-रत्ता चेल्लणादेवि एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए ! समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव पुव्वाणुपुब्बिं चरेमाणे जाव संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ । __ ततो नु श्रेणिको राजा भंभसारो यान-शालिकस्यान्तिक एनमर्थं श्रुत्वा निशम्य हृष्टस्तुष्टो यावन्मज्जन-गृहमनुप्रविशति, अनुप्रविश्य यावत्कल्पतरुरिवालङ्कृतो विभूषितो नरेन्द्रो मज्जन-गृहात्प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव चेल्लणादेवीमवादीत्-"एवं खलु देवानां प्रिये ! श्रमणो भगवान् महावीर आदिकरस्तीर्थकरो यावत्पूर्वानुपूर्व्याचरन्, यावत्संयमेन तपसात्मानं भावयन् विहरति ।
__ पदार्थान्वयः-तते णं-इसके अनन्तर सेणिए राया-श्रेणिक राजा भंभसारे-भंभसार जाण-सालियस्स-यान-शालिक के अंतिए-पास से एयमटुं-इस समाचार को सोच्चा-सुनकर निसम्म और हृदय में अवधारण कर हतुढे-हर्षित और संतुष्ट होकर जाव-यावत् मज्जण-घरं-स्नानागार में अणुप्पविसइ-प्रवेश करता है और अणुप्पविसइत्ता-प्रवेश कर जाव-यावत् कप्प-रुक्खे चेव-कल्पवृक्ष के समान अलंकिए-अलंकृत और विभूसिए-विभूषित होकर णरिंदे-राजा श्रेणिक जाव-यावत् मज्जण-घराओ-स्नानागार से पडिनिक्खमइ-बाहर निकला और पडिनिक्खमइत्ता-निकल कर जेणेव-जहां चेल्लणादेवी-चेल्लणा देवी थी वहाँ गया और उस को एवं-इस प्रकार वयासी-कहने लगा देवाणुप्पिए-हे देवों की प्रिये ! एवं-इस प्रकार आइगरे-धर्म के
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