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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
३७७
प्रकार के भोगों को भोगेंगे सेत्तं-यह तुम्हारा विचार साहु-श्रेष्ठ है, अहो णं-विस्मय है चेल्लणादेवी-चेल्लणादेवी महिड्डिया-अत्यन्त ऐश्वर्य वाली है सुंदरा-सुन्दरी है से तं साहुणी-यह साध्वियों का विचार भी उत्तम है से-अथ Yणं-निश्चय से अज्जो-हे आर्यो ! एयमढे-यह बात समढे-ठीक है ? यह सुनकर उपस्थित साधु और साध्वियों ने उत्तर दिया हंता अत्यि-हां, भगवन् ! आप ठीक कहते हैं ।
मूलार्थ-हे आर्यो ! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उन बहुत से निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहने लगे "श्रेणिक राजा और चेल्लणादेवी को देखकर तुम लोगों के चित्त में इस प्रकार के आध्यात्मिक संकल्प उत्पन्न हुए कि आश्चर्य है श्रेणिक राजा इतना ऐश्वर्य-शाली है और हम भी भविष्य में ऐसे ही भोगों को भोगेंगे-यह ठीक है ? अहा ! चेल्लणादेवी महा ऐश्वर्य-शालिनी है, सुन्दरी है और साध्वी गण का यह विचार ठीक है ? हे आर्यो ! तुम लोगों के ऐसे विचार हैं ?" | यह सुनकर उपस्थित निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों ने कहा "हां, भगवन् ! यह बात ठीक है |
टीका-इस सूत्र में भगवान् की सर्वज्ञता और आर्यों की सत्यता का प्रकाश किया गया है । जब निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों के अन्तःकरण में उक्त संकल्प उत्पन्न हुए, उसी समय श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने उन सब को बुलाकर कहा “हे आर्यो ! तुम लोगों के अन्तःकरण में उक्त संकल्प उत्पन्न हुए हैं ?" "वे बोले आप सच कहते हैं । हमारे चित्त में अवश्य इस प्रकार के संकल्प उत्पन्न हुए हैं।
सूत्र के “से णूणं" इत्यादि वाक्य में आए हुए "से" पद का 'अथ' अर्थ है । जैसे-"से" शब्दो मगधदेश-प्रसिद्धः-अथशब्दार्थे वर्तते । 'अथ' शब्दस्तु वाक्योपन्यासार्थः परिप्रश्नाार्थो वा । यदाह-"अथ प्रक्रियाप्रश्नान्तर्यमङ्गलोपन्यास-प्रतिवचनसमुच्चयेषु । नूनमिति निश्चय, अर्थ:-अभिधेयः समार्थोऽभवदित्यभिप्राय-प्रतिपादक इति । तत्र "हंता" इति निर्ग्रन्थीनाञ्च वाक्यं ‘एवम्' इत्यर्थे तेन 'इष्टमस्माकमस्ति' इत्यर्थः ।
इसके अनन्तर श्री भगवान् ने क्या कहा? यह निम्न-लिखित सूत्र में वर्णन किया जाता है:
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