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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
नैवास्माभिर्दृष्टा देव्यो देवलोके, साक्षादियं देवी । यद्यस्य सुचरितस्य तपो-नियम-ब्रह्मचर्य-वासस्य कल्याणः फलवृत्तिविशेषोऽस्ति वयमप्यागमिष्यति (काले) इमानेतद्रूपानुदारान् यावद् विहरामः । तदेतत्साधु ।
पदार्थान्वयः - अहो - विस्मय है कि णं-वाक्यालङ्कार के अर्थ में है, चेल्लणादेवी–चेल्लणादेवी महिड्ढिया - अत्यन्त ऐश्वर्य वाली जाव- यावत् महा-सुक्खा - अधिक सुख वाली जा णं- जो व्हाया - स्नान कर कय-बलिकम्मा - बलि-कम्मा - बलि-कर्म कर कय- कोउय-मंगल-पायच्छित्ता - कौतुक, मङ्गल और प्रायश्चित कर जाव - यावत् सव्वालंकार- विभूसिया - सब अलंकारों से विभूषित होकर सेणिएणं रन्ना-श्रेणिक राजा के सद्धिं-साथ उरालाई उत्तम जाव- यावत् माणुसगाई - मनुष्य - सम्बन्धी भोग भोगाई - काम-भोगों को भुंजमाणी - भोगती हुई विहरइ - विचरती है। मे- हमने देव-लोगंसि-देव-लोक में देवीओ-देवियां न नहीं दिट्ठाओ देखी हैं किन्तु इमा - यह खलु - निश्चय से सक्खं - साक्षात् देवी- देवी है । जइ यदि इमस्स- इस सुचरियस्स - सुचरित्र का तथा तव - तप नियम-नियम और बंभचेर - वासस्स - ब्रह्मचर्य का कल्लाणे-कल्याणकारी फलवित्ति-विसेसे-फल- वृत्ति विशेष अस्थि - है तो वयमवि- हम भी आगमिस्साणं- आगामी काल में इमाई - इन एयारूवाइं-इ - इस प्रकार के उरालाई - उत्तम जाव- सम्पूर्ण काम - भोगों को भोगते हुए विहरामो - विचरण करेंगे से तं साहुणी - यह हमारा विचार अत्यन्त उत्तम है ।
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मूलार्थ - महाराणी चेल्लादेवी को देखकर साध्वियाँ विचार करती हैं कि आश्चर्य है कि यह चेल्लणादेवी, अत्यन्त ऐश्वर्य-शालिनी तथा बड़े-बड़े सुखों को भोगती हुई स्नान कर, बलि-कर्म कर, कौतुक, मङ्गल और प्रायश्चित कर तथा सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित होकर श्रेणिक राजा के साथ उत्तमोत्तम भोगों को भोगती हुई विचरण करती है । हमने देव-लोक में देवियां नहीं देखी हैं किन्तु यह साक्षात् देवी है । यदि हमारे इस सच्चरित्र, तप, नियम और ब्रह्मचर्य का कोई कल्याण- वृत्ति विशेष फल है तो हम भी आगामी काल में इस प्रकार के उत्तम भोगों को भोगते हुए विचरण करेंगी । यह हमारा विचार श्रेष्ठ है ।
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