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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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संशुद्ध है, मोक्ष-प्रद होने से नैयायिक है, माया, नियाण और मिथ्यात्वरूपी शल्य-कर्म का विनाश करने वाला है, सिद्धि-मार्ग है, मुक्ति-मार्ग है, निर्याण-मार्ग है, निर्वाण-मार्ग है, यथार्थ है, सन्देह-रहित है, अव्यवच्छिन्न है, सब दुःखों के क्षीण करने का मार्ग है | इस मार्ग में स्थिर जीव सिद्ध होते हैं, बुद्ध होते हैं, मुक्त होते हैं, शान्त चित्त होते हैं और सब दुःखों का नाश करते हैं ।
टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने साधु और साध्वियों को आमन्त्रित कर निर्ग्रन्थ-प्रवचन का माहात्म्य वर्णन किया । जैसे-हे चिरजीवी श्रमणो ! जिन आत्माओं ने बाह्य (धन धान्यादि) और आभ्यन्तर (कषायदि) ग्रन्थ छोड़ दिये हैं, उनके लिये यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन-द्वादशाङ्ग-वाणी
१–सत्य है, क्योंकि यह हितकारी और सत्य मार्ग दिखाता है ।
२-अनुत्तर है, क्योंकि यह यथावस्थित वस्तुओं का प्रतिपादक है अर्थात् जो वस्तु जैसी है उसका उसी रूप में वर्णन करता है ।
३-प्रतिपूर्ण है, क्योंकि यह अपवर्ग के समस्त गुणों से पूर्ण है । ४-संशुद्ध है, क्योंकि यह अद्वितीय है और इससे बढ़कर और कोई नहीं । ५-सुशुद्ध है, क्योंकि यह सर्व-विषयक है और कलङ्क-रहित है ।
६-नैयायिक है, नयनशीलम्-नैयायिकम्-मोक्ष-प्रापकं न्यायोपपंन्न वा मोक्ष-प्राप्ति का कारण है।
७-सिद्धि-मार्ग अर्थात् हितार्थ-प्राप्ति का मार्ग है | ८-मुक्ति-मार्ग अर्थात् कर्म से मुक्त होने का मार्ग है ।
६-निर्याण-मार्ग, 'यातीति यानम्, नितरामपुनरावर्तनेन यानं निर्याणम्-मोक्ष-पदम्, तस्य मार्गो निर्याण-मार्गः, अर्थात् मोक्ष का मार्ग है ।
१०-निर्वाण-मार्ग है, क्योंकि इसके आश्रित होकर आत्मा एकान्त सुख का अनुभव करता है । अतः यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सब दुःखों से छुटकारा पाने का मार्ग है।
११-यह अविसन्दिग्ध-अव्यवच्छिन्न है अर्थात भूत, भविष्य, वर्तमान तीनों कालों में इसकी सत्ता रहती है।
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