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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
सम्मान करें । भगवान् कल्याण-कारी, मङ्गल-दायक, देवाधिदेव और ज्ञानवान् हैं । अतः चलकर उनकी पर्युपासना (सेवा) करें । यह पर्युपासना हमको इहलोक और परलोक में हित के लिए, सुख के लिए, क्षेम के लिए, मोक्ष के लिए और यावत् भव-परम्परा श्रेणी में सुख के लिए होगी ।“ चेल्लणादेवी श्रेणिक राजा के पास से यह समाचार सुनकर चित्त में हर्षित और सन्तुष्ट हुई और उसने राजा के प्रस्ताव को स्वीकार किया और स्वीकार करः
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टीका - इस सूत्र में श्रीभगवान् के दर्शनादि की महिमा वर्णन की गई है । महाराज श्रेणिक चेल्लाणादेवी के पास गये और कहने लगे "हे देव - प्रिये ! तथारूप अर्हन्त और भगवन्तों के दर्शन और नाम गोत्र श्रवण करने का ही बड़ा फल होता है, तब उनके पास जाकर वन्दना और नमस्कार करने का, उनके हितोपदेश सुनने का और उनकी सेवा करने का कितना फल होगा, यह वर्णनातीत हैं । जो उनके अमूल्य उपदेशों को ध्यान - पूर्वक सुनता है और उसको श्रद्धा के साथ धारण करता है, वह इस लोक और परलोक में निरन्तर सुख ही सुख प्राप्त करता है । इसलिए हे देव-प्रिये ! आओ हम भी श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की स्तुति करें । उनको नमस्कार करें । वस्त्र आदि से उनका सत्कार और उचित प्रतिपत्ति से उनका सम्मान करें । भगवान् कल्याण-रूप हैं, दुःख दूर करने के लिए देवाधिदेव हैं, ज्ञान - स्वरूप हैं, अतः चलो हम उनकी पर्युपासना करें, क्योंकि उनकी सेवा हमको इस लोक और परलोक में हित-कर, सुख-कर, क्षेम - कर अथवा शक्ति-दायक, मोक्ष-प्रद तथा भव - परम्परा श्रेणी में सुख देने वाली होगी" ।
चेल्लणादेवी महाराज श्रेणिक के मुख से उक्त वचनों को सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई और उसने सहर्ष महाराज के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया ।
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इस सूत्र में श्रीभगवान् की भक्ति का फल वर्णन किया गया है । ज्ञानी पुरुष इस प्रकार से ही भगवान् की स्तुति कर इस लोक और परलोक में सुख की प्राप्ति करते हैं । स्तोत्र आदि की रचना इसी सूत्र के आधार पर की गई प्रतीत होती है । श्रीभगवान् की स्तुति करने से परिणामों की विशुद्धि होती हैं, जिससे प्रायः शुभ कर्मों का ही सञ्चय होता है । फल यह होता है कि शुभ कर्मों के प्रभाव से आत्मा सर्वत्र सुख का ही अनुभव करता है । उसके लिए चारों ओर शुभ ही शुभ है ।
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