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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
दशमी दशा
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इमं च इहभवे य परभवे य हियाए सुहाए खमाए निस्सेयसाए जाव अणुगा-मियत्ताए भविस्सति । तए णं सा चेल्लणादेवी सेणियस्स रन्नो अंतिए एयमट्ट सोच्चा निसम्म हट्टतुट्टा जाव पडिसुणेइरत्ताः
तद् महत्फलं देवानां प्रिये ! तथारूपाणामर्हताम् (दर्शनम्) | यावद् गच्छावो देवानां प्रिये ! श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दावो नमस्यावः सत्कुंर्वः सम्मानयावः, कल्याणं मङ्गलं दैवतं चैत्यं पर्युपास्यावः, एतन्नु इहभवे च परभवे च हिताय, सुखाय, क्षमायै, निःश्रेयसाय यावदनुगामिकतायै भविष्यति । ततो नु सा चेल्लणादेवी श्रेणिकस्य राज्ञोऽन्तिक एनमर्थं श्रुत्वा निशम्य हृष्टा तुष्टा यावत्प्रतिश्रृणोति, प्रतिश्रुत्यः
पदार्थान्वयः-तं-इसलिए देवाणुप्पिए-हे देव-प्रिये ! तहारूवाणं-तथारूप अरहताणं-अर्हन्तों का (दर्शन) महप्फलं-बड़े फल का देने वाला है । तं-अतः जाव-यावत् देवाणुप्पिए-हे देव-प्रिये ! गच्छामो-चलें समणं-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरं-महावीर स्वामी की वंदामो-वंदना करें उनको नमसामो-नमस्कार करें उनका सक्कारेमो-सत्कार करें सम्माणेमो-सम्मान करें । एतं-यह उनकी सेवा णे-हमको इहभवे-इस लोक में य-और परभवे-परलोक में हियाए-हित के लिए सुहाए-सुख के लिए खमाए-क्षेम के लिए निस्सेयसाए-मोक्ष के लिए जाव-यावत् अणुगामियत्ताए-भव-परम्परा में सुख के लिए भविस्सति-होगी । तते णं-इसके अनन्तर सा-वह चेल्लणादेवी-इस समाचार को सोच्चा-सुनकर और निसम्म-हृदय में अवधारण कर हट्टतुट्ठा-हर्षित और संतुष्ट होकर जाव-यावत् राजा के इस प्रस्ताव को पडिसुणेइश्त्ता-स्वीकार करती है और स्वीकार कर
मूलार्थ-"अतः हे देव-प्रिये ! तथारूप भगवान् के दर्शन भी बड़े फल के देने वाले होते हैं । इसलिए हे देव-प्रिये ! चलें, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी की वन्दना करें, उनको नमस्कार करें तथा उनका सत्कार और
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