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नवमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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अत्युत्कट अशुभ आचरण वाला महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता
टीका-इस सूत्र में भी त्रस प्राणियों की हिंसा से उत्पन्न होने वाले महा-मोहनीय कर्म का ही वर्णन किया गया है । जो कोई दुष्ट व्यक्ति किसी स्त्री आदि के मस्तक पर गीला चमड़ा बांध दे और उसको धूप में खड़ा कर कष्ट देकर मार डाले वह महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आ जाता है । क्योंकि यह एक अत्यन्त अशुभ कार्य है । इसको करते हुए उसके चित्त में हिंसा के अध्यवसायों (उपायों) की उत्पत्ति होती है और उसके चित्त में अत्यन्त निर्दयता के भाव उत्पन्न हो जाते हैं । इस प्रकार की अन्य क्रियाओं के करने से भी महा-मोहनीय कर्म का बन्धन होता है यह उपलक्षण से जान लेना चाहिए । ये सब महा-मोहनीय कर्मों के स्थान अनर्थ-दण्ड और अन्याय पूर्वक बर्ताव के सिद्ध करने वाले हैं । अतः प्रत्येक को अनर्थ-दण्ड और अन्याय का त्याग करना चाहिए । “समवायाङ्ग सूत्र' में यह द्वितीय स्थान माना गया है । 'अब सूत्रकार छठे स्थान का विषय कहते हैं :पुणो पुणो पणिहिए हणित्ता उवहसे जणं । फलेणं अदुव दंडेणं महामोहं पकुव्वइ ।।६।। पुनः पुनः प्राणिधिना हत्वोपहसेज्जनम् । फलेनाथवा दण्डेन महामोहं प्रकुरुते ।।६।।
पदार्थान्वयः-पुणो पुणो-बार २ पणिहिए-छल से जो किसी प्राणी को फलेणं-फल से अदुव-अथवा दंडेणं-दण्ड से जणं-मूर्ख जन को हणित्ता-मार कर उवहसे-हंसता है वह महामोह-महामोहनीय कर्म की पकुव्वइ-उपार्जना करता है ।
मूलार्थ-बार-बार छल से जो किसी मूर्ख जन को फल या डण्डे से मारता और हंसता है वह महामोहनीय कर्म के बन्धन में आ जाता है ।
टीका-इस सूत्र में भी त्रस-काय-हिंसा-जनित महा-मोहनीय कर्म का वर्णन किया गया है । जो कोई धूर्त छल से नाना प्रकार के वेष धारण कर मार्ग में चलने वाले पथिकों को धोखा देकर किसी शून्य स्थान पर ले जाकर उनको फल (भाले) अथवा दण्ड
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