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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
यानकं प्रत्युत्प्रेक्षति, प्रत्युत्प्रेक्ष्य यानं प्रत्यवरोहति, यानकं संप्रमार्जयति, संप्रमार्ण्य यानकं निष्काशयति, निष्काश्य यानानि समलंकरोति, यानानि समलंकृत्य यानानि वर-मण्डितानि करोति, कृत्वा दूष्यं प्रविणयति, प्रविणीय यानानि संवेष्टयति, संवेष्ट्यः
दशमी दशा
पदार्थान्वयः - तते णं- इसके अनन्तर सेणिए-श्रेणिक राया- राजा जाणसालियं - यान- शालिक को सद्दावेइ - बुलाता है जाव-यावत् जाण - सालियं - यान - शालिक को सद्दावित्ता - बुला कर एवं - इस प्रकार वयासी - बोला भो देवाणुप्पिया - हे देवों के प्रिय ! खिप्पामेव- शीघ्र ही धम्मियं - धार्मिक जाण - प्पवरं - श्रेष्ठ रथ को जुत्तामेव - तय्यार कर उवट्ठवेह - उपस्थित कर मम - मेरी एयमाणत्तियं - इस आज्ञा को पच्चपिणाहि - पूरी कर मुझ से निवेदन करो तते णं तत्पश्चात् से- वह जाण - सालिए- यान - शालिक सेणियरन्ना - श्रेणिक राजा से एवं वृत्ते समाणे- कहे जाने पर जाव - यावत् हियए - हृदय में हट्ट तुट्ठे - हर्षित और सन्तुष्ट होकर जेणेव - जहां जाण - साला - यान - शाला थी तेणेव -वहीं पर उवागच्छइ - आता है उवागच्छइत्ता - आकर जाण - सालं - यान - शाला में अणुप्पविसइ - प्रवेश करता है अणुप्पविसइत्ता - प्रवेश कर - यानों को पच्चुवेक्खइ-देखता है पच्चुवेक्खइत्ता - देख कर जाणं पच्चोरुभति - यानों को नीचे उतारता है, उतार कर दूसं पीहणेइ-उनसे वस्त्र उतारता है दूसं पीहणित्ता - वस्त्रों को उतार कर जाणगं- यानों को संपमज्जति-संप्रमार्जन करता है अर्थात उनसे धूल आदि झाड़ता है संपमज्जिता - संप्रमार्जन कर जाणगं- यानों को णीणेइ-यान - शाला से बाहर निकालता है और णीणेइत्ता - बाहर निकालकर जाणाइं- यानों को समलंकरेइ-यन्त्र और योक्त्रादि से अलंकृत करता है जाणाइं समलंकरेइत्ता - यानों को अलंकृत कर जाणा-यानों को वरमंडियाइं करेइ - श्रेष्ठ आभूषणों से मण्डित करता है और मण्डित करेइत्ता - कर जाणाइं- यानों को संवेढइ - संवेष्टन कर एक स्थान पर रखता है और संवेढेइत्ता - एक स्थान पर रखकर :
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मूलार्थ - इसके अनन्तर श्रेणिक राजा ने यान- शालिक को बुलाया और बुलाकर वह इस प्रकार कहने लगा-' - "हे देवों के प्रिय ! शीघ्र ही प्रधान धार्मिक रथ को ठीक तय्यार कर उपस्थित करो। मेरी इस आज्ञा को पूरी कर मुझ को सूचित करो" । इस के बाद वह यान- शालिक
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