________________
-
- दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
३५७
उसको आज्ञा दी कि तुम शीघ्र जाकर घोड़े, हाथी, रथ और योधाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना को तय्यार करो। आज्ञा पाकर सेना-नायक ने उसके अनुसार सेना तय्यार की और महाराज से आकर निवेदन किया कि श्रीमान् की आज्ञानुसार सेना तय्यार है।
अब प्रश्न यह उपस्थित होता है कि 'बल-व्यापृत' शब्द का अर्थ क्या है? उत्तर में कहा जाता है "बल-व्यापृतं-सैन्य-व्यापार-परायणं सैन्य-चिन्ता नियुक्तं वा” अर्थात् जो सेना के व्यापार में लगा हुआ है या सेना की चिन्ता में नियुक्त है उसको बल-व्यापृत या सेना-नायक कहते हैं।
अब सूत्रकार इसी से सम्बन्ध रखते हुए कहते हैं:
तते णं सेणिए राया जाण-सालियं सद्दावेइ, जाव जाण-सालियं सद्दावित्ता एवं वयासी-'"भो देवाणुप्पिया! खिप्पामेव धम्मियं जाण-प्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चपिणाहि"। तते णं से जाणसालिए सेणियरन्ना एवं वुत्ते समाणे हट्ठ-तुढे जाव हियए जेणेव जाण-साला तेणेव उवागच्छइ-२त्ता जाणसालं अणुप्पविसइ-२त्ता जाणगं पच्चुवेक्खइ-२त्ता जाणं पच्चोरुभति जाणगं संपमज्जति, संपमज्जित्ता जाणगं णीणेइ-२त्ता जाणाई समलंकरेइ, जाणाई समलंकरेइत्ता जाणाई वरमंडियाई करेइ-रत्ता दूसं पीहणेइ, दूसं पीहणित्ता जाणाई संवेढइ-रत्ताः
ततो नु श्रेणिको राजा यान-शालिकं शब्दापयति, यावद् यान-शालिकं शब्दापयित्वैवमवादीत्-"क्षिप्रमेव भो देवानां प्रिय! धार्मिकं यान-प्रवरं योक्त्रितमेवोपस्थापय, उपस्थाप्य ममैतदाज्ञप्तं प्रत्यर्पय"। ततो नु स यानशालिकः श्रेणिकेन राज्ञैवमुक्तः सन् यावद्धृदये हृष्टस्तुष्टो यत्रैव यान-शाला तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य यान-शालामनुप्रविशति, अनुप्रविश्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org