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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।।
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भोजन-शाला अथवा चूने के भट्टे, व्यापार की मण्डियां, लकड़ी के ठेके, कोयलों के ठेके, जंगलों के ठेके और मूंज आदि दर्शों के कारखाने हैं, उनके जितने भी अध्यक्ष आज्ञा से कार्य करा रहे हैं, उनसे जाकर इस प्रकार कहो।
टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि उक्त सिंहासन पर बैठ कर और राज्य के कार्य-कर्तृ-वर्ग को बुलाकर राजा ने इस प्रकार कहना प्रारम्भ किया:
"हे देवों के प्रिय लोगो ! तुम जाओ और राजगृह नगर के बाहर जो ये निम्ननिर्दिष्ट स्थान हैं, जैसे जहां पर स्त्री-पुरुष रमण करते हैं, जो माधवी आदि लताओं से सुशोभित 'आराम' हैं, जो पत्र, पुष्प और फलों से सुशोभित तथा अनेक जीवों के आश्रयभूत उद्यान हैं, धर्म-शालाएं हैं, वाद-विवाद के स्थान हैं, निर्णय के स्थान हैं, आयतन हैं, देव-स्थान हैं, सभा-मण्डप हैं, उदग-शालाएं हैं जहां पर ग्रीष्म ऋतु में जल का प्रबन्ध होता है, सम्पन्न दुकाने हैं, पण्य-शालाएं हैं, भोजन-शालाएं अथवा चूने के भट्ठे हैं, व्यापार की बड़ी-बड़ी मण्डियां हैं, लकड़ी के ठेके हैं, कोयलों के ठेके हैं, जंगलों के ठेके हैं और मूंज आदि अनेक प्रकार के दर्शों के कारखाने तथा उनके बेचने के स्थान हैं, उनके जितने भी अध्यक्ष अथवा अधिकारी-वर्ग आज्ञा से कार्य करा रहे हैं तथा (आदेशादीनाम्-आज्ञाया अत्यर्थं ज्ञातारोऽधिपतित्वेन प्रसिद्धाः) जो अधिपति वहां रहते हैं उन सब से इस प्रकार कहो।
इस सूत्र से यह भली भांति सिद्ध होता है की साधुओं के लिए स्थान नियत नहीं होता। उनकी जहां इच्छा हो वहीं निवास कर सकते हैं।
सूत्रकार महाराज की आज्ञा का निम्नलिखित सूत्र में प्रकाश करते हैं:
एवं खलु देवाणुप्पिया ! सेणिए राया भभसारे आणवेइ। जदा णं समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थयरे जाव संपाविओ-कामे पुव्वाणुपुव्विं चरेमाणे गामाणुगामं दूतिज्जमाणे सुहं सुहेणं विहरमाणे संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरिज्जा, तया णं तुम्हे भगवओ महावीरस्स अहापडिरूवं उग्गहं अणुजाणह,
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