________________
-
women
पण
३५४
दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
दशमी दशा
सम्माणेति, सक्कारिता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणं दलइ-२त्ता पडिविसज्जेति, पडिविसज्जित्ता नगरगुत्तियं सद्दावेइ-स्त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! रायगिह नगरं सभिंतर बाहिरियं आसिय सम्मज्जिय उवलित्तं करेह-श्त्ता जाव करित्ता पच्चप्पिणंति।।
ततो नु स श्रेणिको राजा तेषां पुरुषाणामन्तिकादेनदर्थं श्रुत्वा निशम्य यावद्धृदयेन हृष्टस्तुष्टः सिंहासनादभ्युत्तिष्ठति, अभ्युत्थाय वन्दति नमस्यति, वन्दित्वा नत्वा च तान् पुरुषान् सत्करोति, सम्मानयति, सत्कृत्वा सम्मान्य च विपुलं जीविता/ प्रीतिदानं ददाति, दत्त्वा प्रतिविसर्जति, प्रतिविसर्म्य नगर-गोपकान् शब्दापयति, शब्दापयति-त्वैवमवादीत्-क्षिप्रमेव भो देवानां प्रियाः! राजगृहं नगरं साभ्यन्तर-बाह्यमासिच्य सम्मायॊपलेपयत, उपलिप्य यावत्कारयित्वा प्रत्यर्पयन्ति। ___पदार्थान्वयः-तते णं-इसके अनन्तर से-वह सेणिए-श्रेणिक राया-राजा तेसिं-उन पुरिसाणं-पुरुषों के अंतिए-पास से एयमटुं-इस समाचार को सोच्चा-सुनकर निसम्म–विचार–पूर्वक उसका अवधारण कर जाव-यावत् हियए-हृदय में हट्ठतुढे-हर्षित और सन्तुष्ट हुआ तथा सीहासणाओ-राज-सिंहासन से अब्भुढेइत्ता-उठकर वंदति-स्तुति करता है नमसइ-शिरो-नमन करता है वंदित्ता-वंदना कर और नमंसित्ता-नमस्कार कर तेसिं-उन पुरिसे-पुरुषों का सक्कारेति-सत्कार करता है और सम्माणेति-सम्मान करता है, सक्कारित्ता-सत्कार कर और सम्माणित्ता-सम्मान कर विउलं-बहुत सा जीवियारिहं-जीवन पर्यन्त निर्वाह के योग्य पीयदाणं-प्रीति दान दलइ-देता है दलइत्ता-देकर पडिविसज्जइ-उनका विसर्जन करता है अर्थात् अपने-अपने स्थान पर जाने की आज्ञा देता है पडिविसज्जइत्ता-प्रतिविसर्जन कर नगर-गुत्तियं-नगर के रक्षकों को सद्दावेइ-बुलाता है सद्दावेइत्ता-बुला कर एवं वयासी-इस प्रकार कहने लगा भो देवाणुप्पिया-हे देवों के प्रियो ! खिप्पामेव-शीघ्र ही रायगिह-राजगृह नगरं-नगर को सब्मिंतरबाहिरिचं-भीतर और बाहर आसिय-जल से सींच कर सम्मज्जिय-सम्मार्जित
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org