________________
दशमी दशा
नवमी दशा में महा-मोहनीय स्थानों का वर्णन किया गया है। कभी-कभी साधु उनके वशवर्ती होकर तप करते हुए 'निदान' कर्म कर बैठता है। मोह के प्रभाव से काम-भोगों की इच्छा उसके चित्त में जाग उठती है और उस इच्छा की पूर्ति की आशा से वह 'निदान' कर्म कर लेता है। परिणाम यह होता है कि उसकी वह इच्छा 'आयति' अर्थात् आगामी काल तक बनी रहती है, जिससे वह फिर जन्म-मरण के बन्धन में फंसा रहता है। अतः सूत्रकार इस दशा में 'निदान' कर्मों का ही वर्णन करते हैं। यही नवमी दशा से इसका सम्बन्ध है।
इस दशा का नाम 'आयति' दशा है। 'आयति' शब्द का अर्थ जन्म या जाति जानना चाहिए। जो व्यक्ति 'निदान' कर्म करेगा उसको उसका फल भोगने के लिए अवश्य ही नया जन्म ग्रहण करना पड़ेगा। यदि 'आयति' पद से 'ति' पृथक् कर दिया जाय तो अवशिष्ट 'आय' का अर्थ 'लाभ' होगा अर्थात् जिस “निदान' कर्म से जन्म-मरण का लाभ होता है, उसी का नाम 'आयति' है।
__ वह लाभ द्रव्य और भाव रूप से दो प्रकार का होता है। द्रव्य-लाभ चारों गति-रूप होता है और भाव-लाभ ज्ञानादि की प्राप्ति का नाम है। संसार-चक्र में परिभ्रमण करते हुए आत्मा 'द्रव्य-लाभ' की प्राप्ति करता है। किन्तु जब वह संसार-चक्र से उपराम पाता है तब ज्ञानादि की प्राप्ति कर लेता है। प्रस्तुत दशा में दोनों प्रकार के लाभों का वर्णन किया गया है। इसका आदिम सूत्र यह है:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org