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दशमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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सेणिए-श्रेणिक नाम वाला एक राया-राजा होत्था था। अण्णया-अन्यदा कयाइ-कदाचित् राजा ने पहाए-स्नान किया और शरीर की स्फूर्ति के लिए तैल मर्दनादि कर कयबलिकम्मे-बलि-कर्म किया। फिर कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते-रक्षा अथवा सौभाग्य के लिए मस्तक पर तिलक किया, विघ्न-विनाश के लिए मंगल तथा अपशकुन दूर करने के लिए प्रायश्चित-पैर से भूमि-स्पर्श आदिक क्रियाएं कीं। सिरसा ण्हाए-शिर में जल डाल कर स्नान किया कंठे-गले में माल-कडे-माला पहनी और आविद्ध-मणि-सुवण्णे-मणि और सुवर्ण के आभूषणों को पहन कर कप्पिय-हारद्धहार-तिसरय-वक्षस्थल पर हार, अर्द्धहार और तीन लड़ी का हार धारण किया पालंबमाण-जिनसे झुम्बक नीचे को लटक रहे थे। कटि-सुत्तयं-कटि-सूत्र से कय-सोभे-शोभायमान पिणद्ध-गेवेज्ज-अंगुले-ज्जग-गले में गले के आभूषण और अंगुलियों में अंगूठियां पहन कर जाव-यावत् कप्परुक्खे चेव-कल्पवृक्ष के समान अलंकिय-अलंकृत और विभूसिए-विभूषित हुआ णरिंदे-नरेन्द्र सकोरंट-मल्ल-दामेणं-सकोरंट वृक्ष के पुष्पों की माला से तथा धरिज्जमाणेणं-धारण किये हुए छत्तेणं-छत्र से जाव-यावत् ससिव्व-चन्द्रमा के समान पियदंसणे-प्रिय-दर्शन वह नरवई-राजा, श्रेणिक जेणेव-जहां पर बाहिरिया-बाहरली उवट्ठाण-साला-उपस्थान शाला थी और जेणेव-जहां पर सिंहासणे-सिंहासन था तेणेव-वहीं पर उवागच्छइ-आता है और उवागच्छइत्ता-वहां आकर सिंहासणवरंसि-श्रेष्ठ राज-सिंहासन पर पुरत्थाभिमुहे-पूर्व दिशा की ओर मुंह कर निसीयइ-बैठ जाता है और निसीयइत्ता-बैठ कर कोडुंबिय-कौटुम्बिक पुरिसे-पुरुषों को सद्दावेइ-आमन्त्रित करता है सद्दावेइत्ता–बुलाकर एवं वयासी-उनके प्रति ऐसा कहने लगाः
मूलार्थ-उस काल और उस समय में राजगृह नाम वाला एक नगर था। उसके बाहर गुणशील नामक चैत्य था। राजगृह नगर में श्रेणिक राजा राज्य करता था। किसी समय उस राजा ने स्नान कर, बलिकर्म, कौतुक, मंगल और प्रायश्चित कर तथा शिर में जल डाल कर स्नान किया। गले में माला पहनी, मणि और सुवर्ण के आभूषण पहने, हार और अर्द्धहार तथा तीन लड़ी की माला पहनी जिनसे झुम्बक लटक रहे थे, कटि सूत्र से शोभायमान होकर ग्रीवा के आभूषणों को धारण किया, अंगुलियों में अंगूठियां पहनी। इस प्रकार वह कल्पवृक्ष की भांति आभूषणों
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