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अब सूत्रकार शुद्धि के विषय में कहते हैं
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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
मासियं भिक्खु पडिमं पडिवन्नस्स नो कप्पति सीओदय-वियडेण वा उसिणोदय- वियडेण वा हत्थाणि वा पादाणि वा दंताणि वा अच्छीणि वा मुहं वा उच्छोलित्तए वा पधोइत्तए वा णण्णत्थ लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा ।
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सप्तमी दशा
मासिक भिक्षु-प्रतिमां प्रतिपन्नः (स्य) नो कल्पते शीतोदकविकटेन वा उष्णोदकविकटेन वा हस्तौ वा पादौ वा दन्तान् वा अक्षिणी वा मुखं वोच्छोलयितुं वा प्रधावितुं वा नान्यत्र लेपालेपेन वा भक्त (वद् ) आस्येन
वा ।
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पदार्थान्वयः -- मासियं-- मासिकी भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स - भिक्षु - प्रतिमा प्रतिपन्न अनगार को सीओदय-वियडेण वा जीव रहित शीतोदक (ठण्डे पानी ) से उसिणोदय- वियडेण वा-अथवा जीव रहित उष्ण (गरम) जल से हत्थाणि वा - हाथ अथवा पादाणि वा-पैर अथवा दंताणि वा-दांत अथवा अच्छीणि वा-आंखें और मुहं - मुख इन सब अवयवों को उच्छोलित्तए - अयत्न (असावधानी) से एक बार धोना वा अथवा पधोइत्तए - बार-बार धोना नो कप्पति- उचित नहीं है णण्णत्थ - किन्तु इन कारणों से अतिरिक्त स्थल में इस विधि का निषेध है जैसे :- लेवालेवेण वा - यदि शरीर में कोई अशुद्ध वस्तु लगी हो तो उसको पानी के लेप से दूर करना चाहिए अथवा भत्त-भात आदि भोजन से लिप्त आसेण - मुख को पानी से शुद्ध अवश्य करना चाहिए । इसी प्रकार यदि हाथ आदि अवयव भी भोजन से लिप्त हो गए हों तो उनको भी पानी से ही साफ करना चाहिए ।
मूलार्थ - मासिकी भिक्षु प्रतिमा- प्रतिपन्न साधु को जीव रहित ठंडे अथवा गरम पानी से हाथ, पैर, दांत, आंखें या मुख एक बार अथवा बार-बार नहीं धोने चाहिएं । किन्तु यदि किसी अशुद्ध वस्तु या अन्नादि सेमुख, हाथ आदि अवयव लिप्त हो गये हों तो उनको वह पानी से शुद्ध कर सकता है, अन्यत्र नहीं ।
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