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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
सप्तमी दशा
इस सूत्र में केवल पृथिवी पर ही उक्त क्रियाओं के करने का निषेध किया है । यदि कोई पूछे कि क्या जलादि पर उक्त क्रियाएं कर सकता है ? उसको उत्तर देना चाहिए कि जिस प्रकार सचित्त पृथिवी पर उक्त क्रियाएं निषिद्ध हैं । इसी प्रकार जलादि षट् कायों के विषय में भी जानना चाहिए ।
सूत्र में आए हुए 'आदानं' शब्द का ‘कर्म-बन्ध का कारण होना' यह अर्थ है । यही इस शब्द के विग्रह से भी ज्ञान हो जाता है:- “आदीयते इति आदानं कर्म, तद्धेतुभूतानि आश्रवद्वाराणि वा-आदानकारणे कार्योपचारात् कर्मबन्धहेतुत्वात्-आदानमेतत्कर्मादानमिति वा दोषाणामादानमायतनमेतत्” ।
वक्ष्यमाण सूत्र में भी सूत्रकार पूर्वोक्त विषय का ही कथन करते हैं :
मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स नो कप्पति ससरक्खेणं काएणं गाहावति-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा । अह पुण एवं जाणेज्जा ससरक्खे से अत्ताए वा जल्लत्ताए वा मलत्ताए वा पंकत्ताए वा विद्धत्थे से कप्पति गाहावति-कुलं भत्ताए वा पाणाए वा निक्खमित्तए वा पविसित्तए
वा ।
मासिकी नु भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नः(स्य) नो कल्पते सरजस्केन कायेन गृहपति-कुलं भक्ताय वा पानाय वा निष्क्रान्तुं वा प्रवेष्टुं वा । अथ पुनरेवं जानीयात् सरजस्कत्वं तदातया (स्वेदतया) वा यल्लतया वा मलतया वा पङ्कतया वा विद्ध्वस्तं स कल्पते गृहपति-कुलं भक्ताय वा पानाय वा निष्क्रान्तुं वा प्रवेष्टुं वा ।
पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिम पडिवनस्स-भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को ससरक्खेणं-सचित्त रज से लिप्त कारणं-काय द्वारा गाहावति-गृहपति के कुलं-कुल में भत्ताए वा–भोजन के लिए अथवा पाणाए-पानी के लिए निक्खमित्तए-निक वा-अथवा पविसित्तए-प्रवेश करना नो कप्पति-योग्य नहीं किन्तु अह-अथ पुण–पुनः
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