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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
सप्तमी दशा
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पच्चोसक्कित्तए । अदुट्ठस्स आवदमाणस्स कप्पति जुगमित्तं पच्चोसक्कित्तए । ___ मासिकी नु भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नः (स्य) नो कल्पतेऽश्वस्य वा हस्तिनो वा गोणस्य (वृषभस्य) वा महिषस्य वा कोलशुनकस्य वा शुनो वा व्याघ्रस्य वा दुष्टस्य वापततः पदमपि प्रत्यवसर्तुम् । अदुष्टस्यापततः कल्पते युगमात्रं प्रत्यवसर्तुम् । ___ पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स-भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न साधु को आसस्स-अश्व (घोड़े) के वा–अथवा हत्थिस्स-हाथी के गोणस्स वा-अथवा वृषभ के महिसस्स वा अथवा महिष (भैंस) के कोलसुणगस्स वा-अथवा वाराह (सुअर) के सुणस्स वा-अथवा कुत्ते के वग्घस्स वा-अथवा व्याघ्र के दुस्स वा-अथवा दुष्ट के आवदमाणस्स-सामने आने पर भय से पयमवि-एक कदम भी पच्चोसक्कित्तए-पीछे हटना णो कप्पति-योग्य नहीं । किन्तु अदुट्ठस्स-अदुष्ट के आवदमाणस्स-सामने आने पर जुगमित्तं-युगमात्र पच्चोसक्कित्तए-पीछे हटना कप्पति-योग्य है । __मूलार्थ-मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न साधु के सामने यदि मदोन्मत्त हाथी, घोड़ा, वृषभ, महिष, वराह, कुत्ता या व्याघ्र आदि आ जायं तो उसको उनसे डर कर एक कदम भी पीछे नहीं हटना चाहिए | किन्तु यदि कोई भद्र जीव सामने आ जाय और वह साधु से डरता हो तो साधु को चार हाथ की दूरी तक पीछे हट जाना चाहिए ।
टीका-इस सूत्र में अहिंसा और साधु के आत्म-बल के विषय में कहा गया है | यदि साधु किसी जंगल के रास्ते चला जा रहा हो और सामने कोई दुष्ट हाथी, घोड़ा, बैल, महिष, सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, चित्रक, रीछ, सुअर या कुत्ता आदि आ जायं तो साधु को किसी से डर कर एक कदम भी पीछे नहीं हटना चाहिए, क्योंकि उसका आत्म-बल महान् है । अतः वह मृत्यु के भय से भी रहित होता है । किन्तु यदि उसके सन्मुख हिरन आदि अहिंसक और शान्त जीव आवें और वे साधु से डरते हों तो मुनि को उनका भय दूर करने के लिए चार कदम तक पीछे हटने में कोई आपत्ति नहीं । ऐसे जीवों को
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