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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
तस्मिन् काले तस्मिन् समये चम्पा नाम नगर्यभूत् । वर्ण्यं पुण्यभद्रं नाम चैत्यम् । वर्ण्यः कोणिको राजा धारिणी देवी । स्वामी समवसृतः परिषन्निर्गता । धर्मः कथितः परिषत्प्रतिगता ।
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नवमी दशा
पदार्थान्वयः - तेणं कालेणं उस काल और तेणं समएणं-उस समय चंपा नामं - चंपा नाम वाली नयरी - नगरी होत्था थी वण्णओ-वर्णन करने योग्य है पुण्णभद्दे नाम - ( उस नगरी के बाहर का) पुण्यभद्र नाम का चेइए - चैत्य ( यक्षायतन) कोणियराया - उस नगरी में कोणिक राजा राज्य करता था और उसकी धारणी देवी - धारणी नाम की राजमहिषी थी वण्णओ-उनका वर्णन करना चाहिए सामी समोसढे - भगवान् महावीर स्वामी पूर्णभद्र चैत्य में विराजमान हो गए परिसा - परिषत् निग्गया- नगरी से निकल कर भगवान् के पास उपदेश सुनने के लिए गई धम्मो - श्री भगवान् ने धर्म कहिओ - कथन किया परिसा - परिषत् धर्म-कथा सुनकर पडिगया - अपने स्थान को चली गई ।
मूलार्थ - उस काल और उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी । उसके बाहर पुण्यभद्र नाम का एक चैत्य (बाग) था । उस नगरी में कोणिक नाम का राजा राज्य करता था । उसकी धारणी नाम की महिषी ( पट्टरानी ) थी । श्री भगवान् (चैत्य में) विराजमान हुए । परिषत् भगवान् के पास (उपदेश सुनने) गई । भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया और परिषत् अपने स्थान को लौट गई ।
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टीका - इस सूत्र में संक्षेप से इस दशा का उपोद्घात वर्णन किया गया है । चतुर्थ आरक के अन्त में एक चम्पा नाम की नगरी थी । उसके बाहर ईशान कोण में पुण्यभद्र नाम का एक उद्यान था । उसमें पुण्यभद्र नाम के एक यक्ष का आयतन भी था । उस समय उस नगरी में कोणिक नाम का राजा राज्य करता था । उसकी धारिणी नाम की राज - महिषी थी । श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अपने शिष्य गण के साथ पुण्यभद्र उद्यान में विराजमान हुए। नगर वालों ने सुना और वे श्री भगवान् के मुख से धर्म-कथा सुनने की चाहना से उनके पास आये । श्री भगवान् ने धर्म- - कथा की और जनता उसको सुन कर अपने स्थान को लौट गई ।
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