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सप्तमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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लिए होते हैं। जैसे-उसको अवधि-ज्ञान उत्पन्न हो जाता है अथवा मनःपर्यव-ज्ञान उत्पन्न हो जाता है अथवा पूर्व अनुत्पन्न केवल-ज्ञान उत्पन्न हो जाता है । इस प्रकार यह एक रात्रिकी भिक्षु-प्रतिमा जिस प्रकार सूत्रों में कही गई है, इसके आचार और ज्ञानादि मार्ग के अनुसार यथातथ्य रूप से सम्यक् काय से स्पर्श, पालन, शोधन, पूर्ण, कीर्तन और आराधन की जाती हुई श्री भगवद् आज्ञा से निरन्तर पालन की जाती है।
__टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि जो भिक्षु इस बारहवीं प्रतिमा का सम्यक्तया आराधन करता है उसको तीन अमूल्य पदार्थों की प्राप्ति होती है । वह अवधि-ज्ञान, मनःपर्यव-ज्ञान और केवल-ज्ञान इन तीनों में से एक गुण को तो अवश्य प्राप्त करता है, क्योंकि इस प्रतिमा में वह महान् कर्म-समूह का क्षय करता है, अतः यह प्रतिमा हित के लिए, शुभ कर्म के लिए, शक्ति के लिए मोक्ष के लिए या आगामी काल में साथ जाने वाले ज्ञानादि की प्राप्ति के लिए होती है । इस प्रतिमा का विधान इनकी प्राप्ति अथवा पूर्वोक्त तीन ज्ञानों की प्राप्ति के लिए ही किया गया है । ___इस प्रकार यह एक रात्रि की भिक्षु-प्रतिमा सूत्रों के कथनानुसार, इसके आचार और झानादि मार्ग के अनुसार और जो कुछ भी इसके क्षयोपशम भाव हैं उनसे युक्त यथातथ्य है । इसको अच्छी तरह से शरीर द्वारा आसेवन, उपयोगपूर्वक पालन, अतिचारों से शुद्ध और अवधि काल तक पूर्ण करते हुए तथा पारणादि दिनों में इसका संकीर्तन और श्रुत द्वारा आराधन करते हुए श्रीभगवान् की आज्ञा से अनुपालन करना चाहिए । क्योंकि इस प्रतिमा से आत्मा अभीष्ट कार्य की सिद्धि अवश्य कर लेता है । इस कथन से हठ-योग या राज-योग की पूर्ण सिद्धि की गई है ।।
अब सूत्रकार प्रस्तुत अध्ययन की समाप्ति करते हुए कहते हैं :
एयाओ खलु ताओ थेरेहिं भगवंतेहिं बारस भिक्खु-पडिमाओ पण्णत्ताओ ति बेमि ।
इति भिक्खु-पडिमा णामं सत्तमी दसा समत्ता ।
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