________________
षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
अब सूत्रकार छठी प्रतिमा का विषय वर्णन करते हैं:
I
अहावरा छट्टी उवासग-पडिमा । सव्व धम्म-रुई यावि भवति । जाव से णं एगराइयं उवासग पडिमं अणुपालित्ता भवति । से णं असिणाण, वियड-भोई, मउलि-कडे, दिया वा राओ वा बंभयारी, सचित्ताहारे से अपरिण्णाए भवइ । से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे जहन्त्रेण एगाहं, दुयाहं, तियाहं वा जाव उक्कोसेण छमासे विहरेज्जा । छट्टी उवासग-पडिमा । । ६ । ।
२१५
I
अथापरा षष्ठयुपासक-प्रतिमा । सर्व-धर्म-रुचिश्चापि भवति । यावत् स एकरात्रिकीमुपासक-प्रतिमामनुपालयिता भवति । स चास्नातः, विकट-भोजी, मुकुलीकृतः, दिवा वा रात्रौ वा ब्रह्मचारी । सचित्ताहारस्तस्यापरिज्ञातो भवति स चैतद्रूपेण विहारेण विहरञ्जघन्येनैकाहं द्वयहं त्र्यहं वा यावदुत्कर्षेण षण्मासान् विहरेत् । षष्ठ्युपासक - प्रतिमा ||६||
पदार्थान्वयः - अहावरा - इसके अनन्तर छुट्टी- छठी उवासग-पडिमा - उपासक - प्रतिमा प्रतिपादन की है । इस प्रतिमा वाले की सव्वधम्म - रुई - सर्व-धर्म-विषयक रुचि यावि भवति होती है और से वह जाव-यावत एगराइयं - एक रात्रि की उवासग-पडिमं - उपासक - प्रतिमा को अणुपालित्ता - अनुपालन करने वाला भवति - होता है । से- वह असिणाणए-स्नान रहित वियड- भोई - दिन और रात्रि में ब्रह्मचर्य पालन करने वाला सचित्ताहारे- सचित्ताहार से उसका अपरिण्णाए- परित्यक्त नहीं होता से वह एयारूवेण - इस प्रकार के विहारेण - विहार से विहरमाणे- विचरता हुआ जहन्नेण - न्यून से न्यून एगा - एक दिन दुयाहं दो दिन वा अथवा तियाहं तीन दिन जाव- यावत् उक्कोसेण- अधिक छमासे-छः मास तक विहरेज्जा- विचरे अर्थात छः मास पर्यन्त इस प्रतिमा का पालन करता है। यही छुट्टी उवासग पडिमा - छठी उपासक-प्रतिमा है ।
Jain Education International
मूलार्थ - इसके अनन्तर छठी उपासक - प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं । जो छठी प्रतिमा ग्रहण करता है उसकी सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org