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सप्तमी दशा
वक्ष्यमाण सूत्र में वर्णन किया जाता है कि यदि मुनि के उपाश्रय में स्त्री और पुरुष आ जायँ तो उसको क्या करना चाहिए
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
मासियं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स इत्थी वा पुरिसे वा उवस्सयं उवागच्छेज्जा, से इत्थीए वा पुरिसे वा णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा पविसित्तए वा ।
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मासिक भिक्षु-प्रतिमां प्रतिपन्नस्य स्त्री वा पुरुषो वोपाश्रयमुपागच्छेत्, सा स्त्री वा पुरुषो वा नो स (भिक्षुः) कल्पते तं प्रतीत्य निष्क्रान्तुं वा प्रवेष्टुं
वा ।
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पदार्थान्वयः - मासियं - मासिकी भिक्खु-पडिमं - भिक्षु - प्रतिमा पडिवन्नस्स - प्रतिपन्न अनगार के समीप उवस्सयं-उपाश्रय में इत्थी वा स्त्री पुरिसे वा-या पुरुष उपागच्छेज्जा-आ जायं, से वह इत्थीए वा स्त्री हो अथवा पुरिसे वा पुरुष हो से उस प्रतिमाधारी मुनि का तं- उस स्त्री या पुरुष की पडुच्च-अपेक्षा से निक्खमित्तए - उपाश्रय से बाहर निकलना अथवा पविसत्तए - बाहर से भीतर प्रवेश करना णो कप्पति - योग्य नहीं है ।
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मूलार्थ - मासिकी भिक्षु - प्रतिमा - प्रतिपन्न मुनि के उपाश्रय में यदि स्त्री या पुरुष आ जायं तो उनको देखकर उसको उपाश्रय के बाहर जाना और बाहर से भीतर आना उचित नहीं ।
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टीका - इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि यदि उपाश्रय में कोई असभ्य व्यवहार होता हो तो मुनि को उस समय क्या करना चाहिए । जैसे- प्रतिमा - धारी मुनि किसी शून्य स्थान में ठहरा हो, यदि वहां कोई स्त्री या पुरुष मैथुन सेवन के लिए आ जायं तो मुनि यदि बाहर हो तो भीतर नहीं जा सकता और यदि भीतर हो तो बाहर नहीं आ सकता । किन्तु उसको उदासीन भाव अवलम्बन कर स्वाध्याय- - वृत्ति में रहना ही योग्य है । यदि साधु के जाने से पहले ही उस स्थान पर स्त्री और पुरुष मैथुन क्रीड़ा करते हों तो मुनि को न तो उस स्थान पर जाना ही उचित है, नाही वहां ठहरना ।
अब सूत्रकार अग्निकाय की अपेक्षा से उपाश्रय से बाहर निकलने के विषय में कहते
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