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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
मासियं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स केइ उवस्सयं अगणिकाएणं झामेज्जा णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए पविसित्तए वा । तत्थ णं केइ बाहाए गाहाए आगसेज्जा नो से कप्पति तं अवलंबित्तए पलंबित्तए वा, कप्पति अहारियं रियत्तए ।
सप्तमी दशा
मासिक भिक्षु-प्रतिमां प्रतिपन्नस्य, कश्चित्, उपाश्रयमग्निकायेन धमेत्, नैव स कल्पते तम् (अग्निं) प्रतीत्य निष्क्रान्तुं प्रवेष्टुं वा । तत्र नु कश्चिद् बाह्लादौ गृहीत्वाकर्षेत् नैव स कल्पते तमवलम्बयितुं प्रलम्बयितुं वा । कल्पते स यथेर्यमर्तुम् ।
पदार्थान्वयः - मासियं - मासिकी भिक्खु-पडिमं - भिक्षु - प्रतिमा पडिवन्नस्स - प्रतिपन्न साधु के उवस्सयं - उपाश्रय को केइ कोई व्यक्ति अगणिकाएणं-अग्निकाय से झामेज्जा - जलाए तो से उस साधु को तं - उस अग्नि की पडुच्च-अपेक्षा से उस उपाश्रय से निक्खमित्त - बाहर निकलना वा अथवा बाहर से पविसित्तए - भीतर प्रवेश करना णो कप्पइ-योग्य नहीं । किन्तु तत्थ - वहां केइ - कोई बाहाए - भुजाएं गाहाए- पकड़ कर आगसेज्जा - उसको बाहर खींचे तो से - उस (मुनि) को तं - उस व्यक्ति का अवलंबित्तए - अवलम्बन करना वा अथवा पलंबित्तए - प्रलम्बन करना णो कप्पति-योग्य नहीं, किन्तु से- उसको अहारियं-ईर्या-समिति के अनुसार रित्तए गमन करना कप्पति-योग्य
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मूलार्थ - यदि कोई व्यक्ति अग्निकाय से प्रतिमा- प्रतिपन्न अनगार के उपाश्रय को जलाए तो मुनि को अग्नि के कारण उपाश्रय से बाहर नहीं निकलना चाहिए और यदि बाहर हो तो भीतर नहीं आना चाहिए | किन्तु यदि कोई उसकी भुजा पकड़ कर उसे खींचे तो खींचने वाले का अवलम्बन और प्रलम्बन करना योग्य नहीं, अपितु ईर्या-समिति के अनुसार गमन करना ही योग्य है ।
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टीका - इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि यदि उपाश्रय में आग लग जाय तो प्रतिमा - प्रतिपन्न मुनि को क्या करना चाहिए । जिस स्थान पर साधु ठहरा हुआ है यदि
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