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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
सव्व-धम्म-रुई -सर्व-धर्म-विषयक रुचि यावि भवति - होती है । जाव - यावत् राओवरायं - रात्रि और दिन बंभयारी - ब्रह्मचारी रहता है। सचित्ताहारे- सचित आहार से उसका परिण्णा - प्रत्याख्यात भवति होता है। से उसका आरंभे-आरम्भ परिण्णाए- परिज्ञात भवति - होता है । किन्तु पेसारंभे- 3 - अन्य से आरम्भ (कृषि आदि पाप - पूर्ण व्यापार) कराना से- उसका अपरिण्णाए- अपरिज्ञात भवति होता है। से वह एयारूवेण - इस प्रकार के विहारेण-विहार से विहरमाणे- विचरता हुआ जाव - यावत् जहन्नेण - जघन्य से एगाहं - एक दिन दुयाहं - दो दिन वा अथवा तियाहं-तीन दिन जाव - यावत् उक्कोसेण- उत्कृष्ट से अट्ठ मासे-आठ मास पर्यन्त विहरेज्जा - विचरण करे से तं-यही अट्टमा-आठवीं उवासग-पडिमा - उपासक - प्रतिमा प्रतिपादन की है ।
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मूलार्थ - इसके अनन्तर आठवीं प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं । इस प्रतिमा को धारण करने वाले की सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है । वह यावद् रात्रि और दिवस में ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करता है, सचित्त आहार और आरम्भ का परित्याग कर देता है । किन्तु वह दूसरों से आरम्भ कराने का परित्याग नहीं करता । इस प्रकार विचरता हुआ वह कम से कम एक, दो या तीन दिन और अधिक से अधिक आठ मास तक विचरण करता है । यही आठवीं उपासक - प्रतिमा है ।
टीका - इस सूत्र में आठवीं उपासक - प्रतिमा का विषय प्रतिपादन किया गया है । इस प्रतिमा में प्रविष्ट होने वाला व्यक्ति पहली प्रतिमा से सातवीं प्रतिमा तक के सम्पूर्ण नियमों का निरतिचार से पालन करता है । वह विशेषतया सर्वदा और सर्वथा ब्रह्मचारी रहता है । वह यद्यपि कृषि और वाणिज्यादि कर्म स्वयं नहीं करता किन्तु दूसरों से कराने का उसको निषेध नहीं । अतः वह आजीविका के निमित्त दूसरों से इन कामों को कराता है, स्वयं कभी उसमें प्रवृत्त नहीं होता ।
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यहां पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि जब अन्य लोगों से कृषि आदि कर्म कराता है तो क्या उसको इसका पाप नहीं लगता ? उत्तर में कहा जाता है कि पाप कर्म करने के तीन मार्ग हैं - करना, कराना और पापकर्म में अनुमति प्रदान करना । स्वयं पापकर्म न करने का तो यहां नियम हो गया। शेष दो कर्मों का उसके लिए नियम नहीं हैं, किन्तु इनका पाप उसको अवश्य लगता है ।
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