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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् .
षष्ठी दशा
भिलिंग-सूवे पच्छाउत्ते चाउलोदणे कप्पति से भिलिंग-सूवे पाडिग्गाहित्तए, नो कप्पति चाउलोदणे पडिग्गहित्तए । तत्थ णं से पुवागमणेणं दोवि पुब्बाउत्ताई कप्पंति दोवि पडिग्गहित्तए । तत्थ णं से पच्छागमणेणं दोवि पच्छाउत्ताई णो से कप्पति दोवि पडिग्गहित्तए । जे तत्थ से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते से कप्पति पडिग्गहित्तए । जे से तत्थ पुवागमणेणं पच्छाउत्ते से णो कप्पति पडिग्गहित्तए ।
तत्र तस्यागमनात् पूर्वकाले (पूर्वागमने) पूर्वायुक्त-स्तण्डुलौदनः पश्चादायुक्तो भिलिङ्ग-सूपः कल्पते स तण्डुलौदनं प्रतिग्रहीतुम्, न कल्पते स भिलिङ्ग-सूपं प्रतिग्रहीतुम् । तत्र तस्यागमनात्पूर्वकाले पूर्वायुक्तो भिलिंग-सूपः पश्चादायुक्त-स्तण्डुलौदनः कल्पते स भिलिङ्ग-सूपं प्रतिग्रहीतुम्, नो कल्पते स तण्डुलौदनं प्रतिग्रहीतुम्, तत्र तस्यागमनात्पश्चात्काले द्वावपि पश्चादायुक्तौ न स कल्पते द्वावपि प्रतिग्रहीतुम | यत्तस्यागमनात्पूर्वकाले पूर्वायुक्तस्तत्स कल्पते प्रतिग्रहीतुम् । यत्तस्यागमनात्पूर्वकाले पश्चादायुक्तं तत्स नो कल्पते प्रतिग्रहीतुम् ।
पदार्थान्वयः-तत्थ-उस गृहस्थ के घर में से-उपासक के पुव्वागमणेणं-जाने से पूर्व पुव्वाउत्ते-पहले पका कर उतारे हुए चाउलोदणे-चावल हों और पच्छाउत्ते-पीछे उतारी हुई भिलिंग-सूवे-मूंग की दाल हो तो से-उसको चाउलोदणे-चावल पडिग्गहित्तए-ले लेना कप्पति-उचित है किन्तु भिलिंग-सूवे-मूंग की दाल पडिग्गहित्तए-लेनी नो कप्पति-उचित नहीं तत्थ-वहां से-उसके पुव्वागमणेणं-आने से पहले भिलिंग-सूवे-दाल पुव्वाउत्ते-पहले पकाकर उतारी हुई हो और पच्छाउत्ते-जाने के अनन्तर चाउलोदणे-चावल पकाए जायं तो भिलिंग-सूवे-दाल तो पडिग्गहित्तए-ग्रहण करना कप्पति-उचित है किन्तु से-उसको चाउलोदणे-चावल पडिग्गहित्तए-लेना नो कप्पति-उचित नहीं हैं | तत्थ-वहां से-उसके पुवागमणेणं-आने से पहले दोवि-दोनों वस्तुएं अर्थात् दाल और
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