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सप्तमी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
'याचना' शब्द से साधु के ग्रहण करने के योग्य जितने भी पदार्थ हैं उन सब का बोध करना चाहिए । इसी प्रकार 'पृच्छना' का जिस विषय में भी सन्देह हो उसके विषय में प्रश्न करने से तात्पर्य है । इसी प्रकार स्थान के लिए आज्ञा मांगना और दूसरों के 'प्रश्नों का उत्तर देना' इन दोनों के विषय में भी जानना चाहिए । सारांश यह निकला कि इन चार विषयों के अतिरिक्त मुनि को नहीं बोलना चाहिए ।
अब सूत्रकार उपाश्रय के विषय में कहते हैं :
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मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स कप्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए । तं जहा - अहे आराम - गिहंसि वा, अहे वियड- गिहंसि वा, अहे रुक्ख-मूल-गिहंसि वा ।
मासिक नु भिक्षु प्रतिमां प्रतिपन्नः (स्य) कल्पते त्रीनुपाश्रयान् प्रतिलेखयितुम् । तद्यथा - अध आराम गृहे वा, अधो विवृत-गृहे वा, अधो वृक्ष-मूल-गृहे वा ।
पदार्थान्वयः - मासियं - मासिकी भिक्खु-पडिमं - भिक्षु - प्रतिमा पडिवन्नस्स - प्रतिपन्न. अनगार को तओ-तीन उवस्सया - उपाश्रय पडिलेहित्तए - प्रतिलेखन करने के लिए कप्पति - योग्य हैं । तं जहा जैसे अहे आराम-गिहंसि - उद्यान स्थित घर में वा अथवा अहे विड- गिहंसि- खुले घर में वा अथवा अहे रुक्ख-मूल-गिहंसि - वृक्ष के मूल में अथवा वृक्षों की जड़ों से बने हुए घर में । णं - वाक्यालङ्कार के लिए है ।
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मूलार्थ - मासिकी भिक्षु- प्रतिमा- प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रय प्रतिलेखन करने चाहिएं । जैसे- उद्यान - गृह, चारों ओर से अनाच्छादित-गृह तथा वृक्ष- मूलस्थ या वृक्ष-मूल-निर्मित गृह ।
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टीका - इस सूत्र में उपाश्रय के विषय में प्रतिपादन किया गया है । मासिक - प्रतिमा - प्रतिपन्न अनगार को तीन तरह के उपाश्रयों की प्रतिलेखना करनी चाहिए | जैसे - जब प्रतिमा पालन करते हुए भिक्षु कहीं निवास की इच्छा करे तो उसको उपाश्रय के लिए उद्यान - गृह, चारों ओर से अनाच्छदित और ऊपर से छादित गृह या वृक्ष - मूलस्थ शुद्ध गृह ढूँढ़ कर वहीं रहना चाहिए ।
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