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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
अब सूत्रकार दशवीं प्रतिमा का विषय वर्णन करते हैं:
अहावरा दसमा उवासग-पडिमा । सव्व-धम्म- रुई यावि भवति । जाव उद्दिट्ट-भत्ते से परिण्णाए भवति । से णं खुर-मुंडए वा सिहा-धारए वा । तस्स णं आभट्ठस्स समाभट्ठस्स वा कप्पंति दुवे भासाओ भासित्तए, जहा जाणं वा जाणं, अजाणं वा णो जाणं । से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे जहन्त्रेण एगाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेण दस मासे विहरेज्जा | से तं दसमा उवासग-पडिमा ।।१०।।
षष्ठी दशा
अथापरा दशम्युपासक प्रतिमा । सर्व-धर्म- रुचिश्चापि भवति । यावदुद्दिष्ट-भक्तं तस्य परिज्ञातं भवति । क्षुर-मुण्डितो वा शिखा धारको वा । तस्य नु भाषितस्य संभाषितस्य वा कल्पेते द्वे भाषे भाषितुम्, यथा जानन्नहं जाने, अजानन्न जाने । स चैतादृशेन विहारेण विहरञ्जघन्येनैकाहं वा द्वयहं वा त्र्यहं वोत्कर्षेण दश मासान् विहरेत् । सेयं दशम्युपासक-प्रतिमा ।।१०।।
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पदार्थान्वय- अहावरा - इसके अनन्तर दसमा दशवीं उवासग - पडिमा - उपासक - प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं । इस प्रतिमा वाले की सव्व धम्म- रुई - सर्व-धर्म-विषयक रुचि यावि भवति होती है । जाव - यावत् उद्दिट्ठ-भत्ते - उद्दिष्ट - भक्त से उसका परिण्णाए- परित्यक्त भवति - होता है । से- वह खुर-मुंडए - क्षुर से मुण्डित होता है वा अथवा सिहा- धारए - शिखा धारण करता है । तस्स उसको आभट्ठस्स- एक बार बुलाने पर वा अथवा समाभट्ठस्स - बार-बार बुलाने पर दुवे-दो भासाओ- भाषाएं भासित्तए - भाषण करने के लिए कप्पंति - योग्य हैं । जहा-जैसे जाणं वा-जिस पदार्थ को जानता है तो कह सकता है कि मैं जाणे - जानता हूं वा-अथवा अजाणं-न जानता हुआ णो जाणं- मैं नहीं जानता हूं | से- वह एयारूवेण - इस प्रकार के विहारेण - विहार से विहरमाणे- विचरता हुआ जहन्ने - जघन्य से एगाहं वा एक दिन अथवा दुयाहं वा दो दिन अथवा तियाहं
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