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षष्ठी दशा
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
मूलार्थ - अब पांचवीं प्रतिमा कहते हैं । इस प्रतिमा वाले की सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है । उसके शीलादि व्रत ग्रहण किये होते हैं । वह सामायिक और देशावकाशिक व्रत की भली भांति आराधना करता है । वह चतुर्दशी आदि पर्व दिनों में पौषध व्रत का अनुष्ठान करता है । वह एक रात्रि की उपासक - प्रतिमा का भी अच्छी तरह पालन करता है । वह स्नान नहीं करता, रात्रि भोजन को त्याग देता है, धोती की लांग नहीं देता, दिन में ब्रह्मचारी रहता है और रात्रि में मैथुन क्रिया का परिमाण करने वाला होता है । इस प्रकार विचरता हुआ वह कम से कम एक दिन दो दिन या तीन दिन से लेकर अधिक से अधिक पांच मास तक विचरता है । यही पांचवीं उपासक-प्रतिमा है ।
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टीका - इस सूत्र में पांचवीं प्रतिमा का विषय वर्णन किया गया है । जो व्यक्ति पांचवीं प्रतिमा धारण करता है वह पूर्वोक्त चार प्रतिमाओं के नियम सम्यक्तया पालन कस्ता है । जैसे - सबसे पहले उसको सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है । वह शीलादि व्रतों को ग्रहण कर उनका निरतिचार से पालन करता है । वह सामायिक और देशावकाशिक व्रतों का भली भाँति अनुष्ठान करता है । वह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावास्या और पौर्णमासी आदि पर्व दिनों में पौषध व्रत की आराधना करता है । इनके साथ-साथ वह एक रात्रि की कायोत्सर्ग-प्रतिमा का भी अच्छी तरह पालन करता है । इस पांचवीं प्रतिमा में पांच बातें विशेषतया धारण की जाती हैं। जैसे- पांच मास तक स्नान न करना, रात्रि भोजन का परित्याग करना, धोती की लांग न देना, दिन में ब्रह्मचर्य व्रत धारण करना और रात्रि में मैथुन क्रियाओं का परिमाण करना । इन नियमों से पांचवीं प्रतिमा का विधि- पूर्वक पालन किया जाता है । यदि कोई व्यक्ति पांचवीं प्रतिमा को ग्रहण कर एक, दो, तीन या दस दिन अर्थात् पांच मांस से पहले अपनी इह - लीला संवरण कर ले ( मर जाय) या दीक्षित हो जाय तो उसके लिए इसकी अवधि उतने ही दिनों की होगी । किन्तु जो जीवित हैं और दीक्षित नहीं हुए उनके लिए इसकी (पांचवीं प्रतिमा की अवधि पांच मास की प्रतिमापादन की गई है। पहली प्रतिमाओं का समय भी इसके अन्तर्गत है ।
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