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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
I
असिणाणए, वियडभोई, मउलिकडे, दिया बंभयारी, रत्ति परिमाणकडे । से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे, जहन्त्रेण गाहं वा दुयाहं वा तियाहं वा उक्कोसेण पंच मासं विहरइ । पंचमा उवासग-पडिमा ।।५।।
षष्ठी दशा
अथापरा पञ्चम्युपासक - प्रतिमा । सर्व-धर्म- रुचिश्चापि भवति । तस्य नु बहवः शीलव्रत....यावत् सम्यगनुपालयिता भवति । स च सामायिकं .... तथैव, स च चतुर्दशी.... तथैव स चैकरात्रिकीमुपासक- प्रतिमां सम्यगनुपालयिता भवति । स चास्नातः, विकटभोजी, मुकुलीकृतः, दिवा ब्रह्मचारी, रात्रौ परिमाणकृतः, स न्वेतद्रूपेण विहारेण विहरञ्जघन्येनैकाहं द्वयहं वा त्र्यहं वा, उत्कर्षेण पञ्च मासान् विहरति । पञ्चम्युपासकप्रतिमा ।।५।।
पदार्थान्वयः - अहावरा - इसके अनन्तर पंचमा- पांचवीं उवासग पडिमा - उपासक - प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं । सव्वं - धम्म-सर्व-धर्म-विषयक रुई - रुचि भवति होती है - और तस्स - वह बहूइं बहुत से सीलवय - शीलव्रत आदि जाव- जितने व्रत हैं उनका सम्मं अच्छी तरह अणुपालित्ता - अनुपालन करने वाला भवति - होता है । से- वह सामाइयं-सामायिक और तहेव - तत्सदृश अन्यव्रतों, से वह चउद्दसी - चतुर्दशी तहेव - तत्सदृश अष्टमी आदि के दिन पौषध, से वह एगराइयं-एक रात्रि की उवासग पडिमं - उपासक - प्रतिमा को सम्मं भली भाँति अणुपालित्ता - अनुपालन करने वाला भवति - होता है । से वह असिणाणए-स्नान न करना वियडभोई - रात्रि में भोजन न करना मउलिकडे-धोती के लांग न देना दिया बंभयारी - दिन में ब्रह्मचारी रत्तिपरिमाणकडे - रात्रि
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मैथुन के परिमाण करने वाला होता है। से वह एयारूवेण - इस प्रकार के विहारेण-विहार सेविहरमाणे - विचरता हुआ जहन्नेण - जघन्य से एगाहं एक दिन वा अथवा दुयाहं-दो दिन वा अथवा तियाहं तीन दिन वा अथवा अधिक दिन उक्कोसेण- उत्कृष्ट से पंचमासं पांच मास पर्यन्त विहरइ - विचरता है । यही पंचमा- पांचवीं उवासग पडिमा - उपासक - प्रतिमा है । णं-वाक्यालङ्कार और अवि- समुच्चय के लिए है ।
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