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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
चतुर्थी दशा
विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ, खेत्तं विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ, वत्थु विदाय वायं पउंज्जित्ता भवइ । से तं पओग-मइ-संपया ।।७।।
अथ का सा प्रयोग-मति-सम्पत् ? प्रयोग-मति-सम्पच्चतु-विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-आत्मानं विज्ञाय वादं प्रयोक्ता भवति, परिषदं विज्ञाय प्रयोक्ता भवति, क्षेत्रं विज्ञाय वादं प्रयोक्ता भवति, वस्तु विज्ञाय वादं प्रयोक्ता भवति । सेयं प्रयोग-मति-सम्पत् ।७।।
पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सी पओग-मइ-संपया-प्रयोग-मति-सम्पदा है ? (गुरू कहते हैं) पओग-मइ-संपया-प्रयोग-मति-सम्पदा चउव्विहा-चार प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की है तं जहा-जैसे आयं-अपनी समर्थता विदाय-जान कर वायं-वाद पउंज्जित्ता-करने वाला भवइ-होता है परिसं-परिषद् के भावों को विदाय-जानकर वायं-वादविवाद-पउंज्जित्ता-करने वाला भवइ-होता है खेत्तं-क्षेत्र को विदाय-जानकर वायं-वादविवाद का पउंज्जित्ता-प्रयोग करने वाला भवइ-होता है वत्थु-पदार्थ या व्यक्ति विशेष को विदाय-जानकर वायं-वादविवाद के लिए पउंज्जित्ता-उद्यत भवइ-होता है । सेतं-यही पओग-मइ-संपया-प्रयोग-मति-सम्पदा है ।
मूलार्थ-हे भगवन् ! प्रयोग-मति-सम्पदा किसे कहते हैं ? हे शिष्य ! प्रयोग-मति-सम्पदा चार प्रकार की वर्णन की गई है, जैसे-अपनी शक्ति को देखकर विवाद करे, परिषद को देखकर विवाद करे, क्षेत्र को देखकर विवाद करे और पदार्थों के विषय को या पुरुष विशेष को देखकर विवाद करे । यही प्रयोग-मति-सम्पदा है ।
टीका-इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि वाद में किस समय और कैसे प्रवृत्त होना चाहिए | जिस को इसका अच्छी तरह ज्ञान हो जाएगा उसके अभीष्ट कार्य सहज ही में सिद्ध हो सकते हैं | जो इससे अपरिचित्त है वह कभी सफल-मनोरथ नहीं हो सकता । अतः वाद परिज्ञान की अत्यन्त आवश्यकता है | सब से पहिले अपनी शक्ति देखकर वाद
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