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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
सारांश यह निकला कि प्रयोग-मति-सम्पदा का गणी को सदैव ध्यान रखना
चाहिए ।
चतुर्थी दशा
इसके अनन्तर सूकार संग्रह - परिज्ञा नाम वाली आठवीं गणि-सम्पत् का विषय वर्णन करते हैं:
से किं तं संग्गह-परिन्ना नामं संपया ? संग्गह- परिन्ना नामं संपया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा - वासा - वासेसु खेत्तं पडिलेहित्ता भवइ बहुजण-पाउग्गताए, बहुजण पाउग्गताए पाडिहारिय पीढ-फलग- सेज्जा - संथारयं उगिण्हित्ता भवइ, कालेणं कालं समाणइत्ता भवइ, अहागुरू संपूएत्ता भवइ । से तं संग्गह- परिन्ना नामं संपया || ८ |
अथ का सा संग्रह-परिज्ञा नाम सम्पत् ? संग्रह-परिज्ञा नाम सम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-वर्षावासेषु क्षेत्रं प्रतिलेखयिता भवति बहुजन - प्रयोगितायै, बहुजन - प्रयोगितायै प्रातिहारिक पीठ फलक- शय्या संस्तारकमवग्रहीता भवति, कालेन कालं समानेता भवति, यथागुरू संपूजयिता भवति । सेयं संग्रह-परिज्ञा नाम सम्पदा ||८||
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पदार्थान्वयः - से किं तं वह कौन सी संग्गह- परिन्ना-संग्रह - परिज्ञा नाम-नाम वाली संपया - सम्पदा है ? (गुरू कहते हैं) संग्गह- परिन्ना - संग्रह - परिज्ञा नाम-नाम वाली संपया - संपदा चउव्विहा- चार प्रकार की पण्णत्ता प्रतिपादन की गई है तं जहा- जैसे बहुजण - बहुत मुनियों के पाउग्गत्ताए- प्रयोग के लिए वासा - वासेसु-वर्षा ऋतु में खेत्तं - क्षेत्र पडिले हित्ता - प्रयोग के लिए पाडिहारिय- लौटाए जाने वाले पीढ-फलग-पीठफलक (चौकी) सेज्जा - शय्या संथागं-संस्तारक उगिण्हित्ता - अवग्रहण करने वाला भवइ है कालेन - उचित समय पर कालं - क्रियानुष्ठानादि का समाणइत्ता - अनुष्ठान करने वाला भवइ - है अहागुरू - गुरुओं की उचित रीति से संपूएत्ता - पूजा करने वाला भवइ - है । सेतं - यही संग्गह- परिन्ना-संग्रह - परिज्ञा नाम-नाम वाली संपया - संपदा है ।
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