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दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम्
षष्ठी दशा
मिच्छा दंडं पउंज्जइ । एवामेव तहप्पगारे पुरिस-जाए तित्तिर-वट्टग-लापय-कपोत-कपिंजल-मिय-महिस-वराह-गाहगोह-कुम्म-सरिसवादिएहिं अय-त्ते कूरे मिच्छा-दण्डं पउंजइ ।
अथ यथा-नामकः कश्चन पुरुषः कलम-मसूर-तिल-मुद्ग-माष-निष्पावकुलत्थालिसिंदक-यवयवा इत्येवमादिष्वयत्नः क्रूरो मिथ्या-दण्डं प्रयुञ्जति । एवमेव तथा-प्रकारः पुरुष-जातिस्तित्तिर-वर्तक-लावक-कपोत-कपिञ्जलमृग-महिष-वराह-ग्राह-गोधा-कूर्म-सरीसृपादिष्वयत्नः क्रूरो मिथ्या-दण्डं प्रयुञ्जति ।
पदार्थान्वयः-से-अथ जहा-जैसे नामए-नाम सम्भावना अर्थ में है केइ-कोई पुरिसे-पुरुष कलम-शाली विशेष मसूर-मसूर तिल-तिल मूंग-मूंग मास-माष (उड़द) निप्फाव-धान्य विशेष कुलत्थ-कुलत्थ आलिसिंदग-आलिसिंदक (धान्य विशेष) जवजवा-जवार एवमाइएहि-इत्यादि अनेक प्रकार के धान्यों के विषय में अयते-अयत्न-शील कूरे-क्रूर कर्म करने वाला मिच्छादडं-मिथ्यादण्ड का पउंजइ-प्रयोग करता है | एवामेव-इसी प्रकार तहप्पगारे-इसी प्रकार के पुरिसजाए-पुरुष-जात तित्तिर-तित्तिर वट्टग-वटेर (एक जाति का पक्षी) मिय-मृग महिस-महिष वराह-शूकर गाह-ग्राह (जीव विशेष) गोह-गोधा कुम्म-कच्छुवा सरिसवादिएहिं-सर्पादि जीवों के विषय में अयत्ते-अयत्नशील क्रूरे-क्रूर (निर्दयी) मिच्छा-दण्डं-मिथ्या दण्ड का पउंजइ-प्रयोग करता है । ___मूलार्थ-जैसे कोई पुरुष कलम, मसूर, तिल, माष, निष्फाव, कुलत्थ, आलिसिंदक और ज्वार आदि धान्यों के विषय में अयत्नशील हो क्रूरता से मिथ्या-दण्ड का प्रयोग करता है । इसी प्रकार कोई पुरुष विशेष तित्तिर, बटेर, लावा, कबूतर, कपिञ्जल, मृग, महिष (भैंस), वराह (शूकर), गाह, गोधा, कछुआ और सादि जीवों के विषय में अयत्नशील हो क्रूरता से मिथ्या-दण्ड का प्रयोग करता है ।
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